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सर्व प्रकारनी प्रतिमाओनी ?, परंतु परिवाडीकारना आ मौननो खुलासा परिवाडीना परिशिष्टना एक उल्लेख उपरथी स्वयं थइ जाय छे - ' कुमरगिर' ना बीजा चैत्यनी संख्या जणावीने ते " पीतल पडिमा चारसे वली, छन्नुं उपरि मनहरु ।" आवो एक नवो उल्लेख करे छे, यद्यपि ए उल्लेखनी अर्थ पवो पण लेइ शकाय के 'चैत्यनी प्रतिमा - संख्या गणाव्या बाद आ पीतलमय प्रतिमाओनो संख्या गणाववाथी बीजे सर्व स्थले बतावेली सामान्य प्रतिमासंख्या पाषाणनी प्रतिमाओनी ज होवी जोइए, ' परंतु ग्रन्थकारना अभिप्रा यनो विचार करतां आ कल्पना टकी शकती नथी, ए वात खरी छे के ग्रन्थकारे कोइ ठेकाणे पीतलनो के धातुनी प्रतिमाओनो जुदो उल्लेख कर्यो नथी, मात्र आएक स्थले कर्यो छे अने ते पण जुदो, छतां ते संख्या तेमणे प्रतिमाओनी कुल संख्यामां सामेल करी छे, जो पाटणनां २०० बसो देहराओनी धातुमय प्रतिमाओने गणनामां क लोधी होय तो कुमरगिरना एक ज देहरानी पीतलनी प्रति माओने भेली गणवानुं कांइ कारण न हतुं. ए उपरथी खुल्लं समजाय छे के परिवाडीकारे दरेक चैत्यनी जे प्रतिमा संख्या बतावी छे, तेमां धातुनी प्रतिमाओ पण सामेल समजवानी छे, दरेक ठेकाणे तेनो जुदो उल्लेख न करवानुं कारण विस्तार थइ जवानो भय हतो, अने कुमर गिरमां जुदो उल्लेख करवानुं कारण धातुप्रतिमाओनी बहुलता बताववी एज होइ शके.