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परिशिष्ट पंडित हर्षविजय कृता.
पाटणचैत्य-परिपाटी.
समरीय सरसती सांमनोए, प्रणमी गुरुपाय । पाटणचैत्य प्रवाडी, स्तवन करतां मुख थाय ॥ १ ॥ पाटण पुण्य प्रसिद्ध क्षेत्र, पुण्यनुं अहीठांण । जिन प्रासाद जिहां घणा ए, मोटइं मंडाण ॥२॥ मुझ मन अतिउमाइलो ए, जिनवंदन केरो। पाटण चैत्य प्रवाडी, करतां हरख्यो मन मेरो ॥ ३ ॥ प्रथम पंचासरे जाइइं ए, तिहां प्रासाद च्यार । पंचासर जिनवर तणो ए, देखो दीदार ॥४॥ चोपन बिंब तिहां अतिभला ए, वली हीरविहार। प्रतिमा त्रिण सहगुरु तणीए, मूरति मनोहार ॥५॥ तिहांथी ऋषमजिणंद नमुंए। बिंब पन्नर गंभारइ । एकसो बिंब अतिमलाए, भमतीए जुहारइ ॥ ६॥ वासुपूज्यने देहरे ए, बिंब त्रण वखाणुं। महावीर पासे वली ए, बिंब चारज जाणुं ॥७॥