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॥ ढाल सामेरी ॥४॥ आव्या पाटकि बांगडीइ रे। ऋषभनइ देहरइ चडीइ । जिहां पाप अढारइ नडीइ रे। पुण्यरयणे तिहां वली जडीइ३१ जिमणइ पद्मप्रभ स्वामी रे । पास पूरइ वंछित कामी ।, त्रणि सई पंच्योत्तरि प्रतिमा रे । निरुपम जेहनउ महिमा।।३२॥ मणिहट्टीनइ देहरइ रे । वीरजिनमहिमा मेर इ । प्रतिमा पंच ते जाणउं रे। देवदत्त चैत्य वखाणउं ॥ ३३ ॥ तेर जिणेसर भावी रे। मांका महितानइ पाटकि आवी। मृगलंछन जिन रंगइ रे । अवर वीस जिन चंगई ॥ ३४ ॥ पाटकि कुंभारीइ पेषी रे । सोनी अमीचंद घरि जिन निरषी शांतिजिन हईइ धरिउ रे । सतर जिनस्यु परिवरीउ ॥३५॥ वछू जवहिरी घरि दीठा रे । चुचीस जिनवर बइठा । जिनपूजा भावई कीजइ रे । समकित लाहउ लीजइ ॥ ३६॥ ढाल जलहीनउ ॥५॥ त्रिणि पल्योम भोगवीए ढाल तंबोलीवाडइ आवीआ भावीआ देव सुपास । प्रतिमा दीपइ बहुत्तरि पूरइ जन-मन आस । वीजइ देहरइजिनवर सात नमउ ते सार । बुहरा रूपा मंदिरि आदि जिणंद उदार ॥ ३७॥ प्रतिमा दश छइ मनोहर सुर नर सारइ सेव ।