Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 12
________________ करवा पूर्वक तेनी स्तुति वा प्रशंप्ता करवी. आचारांगनिः युक्ति अने निशीथचूर्णिमां थयेली तीर्थोनी नोंध ते आजकालनी तीर्थमालाओ अने तीर्थकल्पोर्नु मूल बीजक सम जवु जोइये.सिद्धसेनसूरिनु सकल तीथ स्तोत्र', महेन्द्रसूरिनुं तीर्थमालास्तवन,२ जिनप्रभसूरिनी शाश्वताशाश्वतचैत्यमाला,३ विविधतीर्थकल्प४ विगेरे संस्कृत प्राकृत अप. ५ आ संस्कृत स्तोत्र पाटगमा संघवीनी शेरीना ताडपत्रीना पुस्तक भंडारमा छे. एना कर्ता सिद्धसेन सूरि क्यारे थया तेनो निश्चय नथी, छतां संभव प्रमागे तेरमी सदीना पूर्वार्धमा थइ गयेला सिद्धसेन ज एना की होवा जोइये. २ आ प्राकृत स्तवन पण तेरमी सदीमा ज बनेलं संभवे छे. महेन्द्रसूरि नामना बे आचार्य थया छे-१ ला पूर्णतल्लगच्छीय प्रसिद्ध आचार्य हेमचंद्रजीना शिष्य जे १२१४ मां विद्यमान हता. २ जा नाणकीयगच्छीय जे सं. १२२२ मां विद्यमान हता, आ स्तवनना कर्ता आ बेमांथी कया तेनो निश्चय थतो नथी. ३ आ चैत्यमाला अपभ्रंश भाषामां छे, एना की जिनप्रभसूरि जे १४ मी सदीमां थइ गया छे, जेमगे अनेक चरित्रो अने रासो अपभ्रंशमां लखेला छे, जेटली अपभ्रंशनी कविता पाटगना भंडारोमा एमनी मळे छे, तेटली बीजा कोइ पण कविनी नथी मळती. ४ संस्कृत अने प्राकृतमा बनेला आ तीर्थकल्पो प्रसिद्ध छे. एना कर्ता जिनप्रभसूरि खरतरगच्छनी लघुशाखामा थइ गया छे. तेमणे आ तीर्थकंल्पसंग्रह विक्रमनी १४ मी सदीना उत्तरार्धमा बनाव्यो छे.

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