Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ २० उपरनी नोंध सिवाय परिवाडोकार ललितप्रभसूरिना संबन्धमा विशेष हकीकत जाणवामां आषी नथी. तेमनी कृति उपरथी तेओ सारा विद्वान् होवानो दावो करो शकता नथी, परंतु आ प्रस्तुत कृति तेमनी संग्रहशीलतानो सारो परिचय आपे छे, ग्रंथकार पोते पूनमगच्छना आचार्य होइ ढंढेरवाडामां रहेता हता, ' अने तेथी ज प्रस्तुत परि वाडीनी शरुआत तेमणे ढंढेरवाडाना चैत्योथी ज करेली जणाय छे, तेमना पछी लगभग ८० वर्षे बनेली बीजी पाटणचैत्य परिवाडीनी शरुआत पंवासराना चैत्योथी थाय छे, कारण तेन कर्ता हर्षविजय तपागच्छीय यति हता अने तपागच्छना यतियोनुं मुख्य आश्रयस्थान पंचासरामां हतुं. आ प्रमाणे जुदा जुदा कर्ताओनी परिवाडीओ जुदा जुदा स्थानोथी शरु थतां वासोना अनुक्रममां घणो घोंटालो थइ जाय छे, अने तेम थतां एकनी साथे बीजी चैत्य परिवाडीनुं मेलान करवामां केटली मुश्केलीओ नडे छे, तेनो ठीक ठीक अनुभव आ प्रस्तावनाना लेखकने थयो छे. 9 प्रस्तुत ललितप्रभसूरिए वि. सं. १६५४ मां प्रतिष्ठित पंचतीर्थी ( सम्भवनाथ बिम्बनी मुख्यतावाली ) धातुप्रतिमा चाणसमा गाममां जिनमन्दिरमां विद्यमान छे. ( जूओ जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह भा० १, १०१ ) ललितप्रभसूरिए वि. सं. १६५५ मां अणहिलपाटणमां ढंढेरवाडाना उपाश्रयमांज श्री बंद केवलिचरित ( रास) पण रच्यो छे. -ला. भ. गांधी.२ आजे पण ढंढेरावाडामां पूनमगच्छतो उपाश्रय मौजुद छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130