Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 98
________________ आदित रे वार अनोपम ते कहिउ रे। तिणि दिन आदर आणि । भावई रे २ जिनना गुण वषा णीइ रे ॥ इम स्वामी० ॥ जिन विंव ज रे जुहार- नव सहस सुंदरू रे । शत पांचइ विचारि अठाणउ रे २ ऊपरि ते वली हुं भ गरे । ए सर्व जरै। ग्राम नगर पुर जे कह्या रे धरीआ संख्या मानि । अरचूं रे २ आणंद आणी मनि घणउ रे ॥२०३॥ ॥ कलश ॥ .. इम चैत्य-प्रवाडी मनि रूहाडी रची अति साहामणी । श्रीपास पसाई चित्ति ध्याई अणहल्ल पाटण तेहतणी । श्री सद्गुरु पामी धरउ धामी स्तवन रूपि सुहाकरो । संखेसरु श्रीपास स्वामी सयल भुवनइ जय करो ॥ २०४ ॥ इति श्री भट्टारक श्री श्री ४ श्री ललित प्रभमूरि कृता समस्त चैत्य प्रपाटिका संपूर्णा ॥ - १ संकुडिअजन्हुकुप्पर-गीवकरचरण बंधणावय वउ । अणुहबउ तुम्ह वयरी । जं लेहउ पावए मुक्खं ॥ संवत् १६४८ वर्षे पोष मासे वहुलपक्षे १ सोमे मु. गुणजी लिखितं ।। (चैत्य परिवाडीनी प्राचीन प्रतिनो अन्त्य लेख.)

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