Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library
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१०४
पोहती मन केरी आस ॥ जि०॥ १०॥ कीधी चैत्यप्रवाडी में सार, मनमांहि धरी हर्ष अपार । जिन नमतां जयजयकार, जि०॥ ११ ॥
॥ढाल ॥९॥ जिनजी धन धन दिन मुज आजनो॥ वांद्या श्रीजिनराज हो जिनजी, काज सया सवि माहरां, पाम्युं अविचल राज हो ॥जि०१॥ जिनजी पंचाणुनइ माजने, श्रीजिनवर प्रासाद हो । जिनजी भाव धरी भवि वंदीए, मुकी मन विखवाद हो।जि०२॥ जिनजी बिंबतणी संख्या सुणो, माजने तेर हजार हो । जिनजी पांचसे होतर वंदीए, सुखसंपत्ति दातार हो ।जि०३॥ देहरासर श्रवणे सुण्यां, पंचसयां सुखकार हो । जिनजी तिहां प्रतिमारलीयामणी,माजने तेर हजार हो।जि०४॥ संवत सतर ओगणत्रीसे, पाटण कीध चोमास हो । जिनजी वाचक सौभाग्यविजय गुरु, संघनी पोहती आस
हो । जि० ५॥ जिनजी साहव सुआ-सुत सुंदर सा रामजी सुविचार हो । जिनजी सुधो समकित जेहनो। विनयवंत दातार हो । जि० ॥६॥
१ वरू' इति पाठान्तर. २ 'साहाज्ये पाठान्तर

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