Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 122
________________ ११६ परवइ परबइ लइसियए, सीतल वायइ वाय ॥ २४ ॥ मरुदेवा गइवर चडिय, अचिरानंदण संति । छीपकवसहिय बंदियइ ए, अदबुद सोवन कति ॥ २५॥ अनुपम सरवर पेखियइ ए, सरगारोहिणि चंग। वाधिणि निरखी बारणइ ए, रोचिय मह अंगि ॥ २६॥ वस्तु आदि जिणवर आदि जिणवर नमिय बहु भत्ति, देवासुर संथुणिय कुमयमोहमहिमा विहंडण; खरतरवसहिय पढजिण, नेमिनाह गिरनार मंडण ।। रायणतलि हिव पूजियइ, सामिआदिल-पाइ, नाग मोर बे ध्याइयइ, जे हुआ सुरकाइ ॥ २७ ॥.. इणिपरि यात्रा विमलगिरे, कीधी मन उल्हासि । कवडजक्ष-सुपसाउलइ ए, टला विधन दुह गसि ॥८॥ पाटण पहवह वरनयर, जिह विससेण मल्हार। अवर बिंब बहु वंदियह ए, तिहां न लाभइ पार ॥ २१ ॥ सिरि संभवपहु वाविपुरे, लोद्राडइ सिरिसंति; . फीदीवनयर सिरिवीरजिण, जसु पसाइ सुह संति ॥३०॥ तेत्रीस वच्छर विगयमच्छर ठामि ठामि जिणेसरा।। निय भाव सत्तिहि विविह भत्तिइ भविय कमल दिणेसरा । बहु संघ साथइ देवराजइ बच्छराजि नमंसिया। ते देव सुहमर जावडू थिर श्रीसाधुचंद्रि प्रसंसिया ॥३॥ ॥ इति तीर्थराज चैत्यपरिपाटी स्तवनं ॥

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