Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ १०३ नवपल्लव नमुं उछांही, जिणेसर ताहरा गुण गाउं ॥ जिम मनवंछित सुख पाउं ॥ जि० १ ॥ साठ उपर सत तिम चार । बीजे देहरे श्रीशांति जुहार । fir ओगणसाठ उदार ॥ जि० २ ॥ कलावाडे देहरां दोय, शांति बिंब एकावन होय । बावन जिनालय जोय || जि० ३ ॥ पीतलमय बिंब सोहावे, विमलनाथ भविक मन भावे । घउ उत्तर चतुरा जिनगुण गावे ॥ जि० ४ ॥ तिण एकसो चोपन जिनराया, ऋषभदेवना प्रणमुं पाया । दणायवाडे शिवसुखदाया || जि० ॥ ५ ॥ धंधोलीए संभव जिन साचो, वंदि त्रेपन जिन मनमांहि माचो । तूंही जिन जगमांहि साचो ॥ ६ ॥ गोलवाडे श्रीमहावीर, सोवन वान जास शरीर । सात प्रतिमा गुण गंभीर ॥ ७ ॥ जि० ॥ दोय शत दस प्रतिमा पास, श्रीशतफणी जिनपास । पूरे मन केरी आश || जि० ८ ॥ खारीवावे श्री जिनवर्धमान, तेर प्रतिमा गुणह निधान । जिननामे कोड कल्याण ॥ जि० ॥ ९ ॥ तिहांथी श्रीपंचासरो पास, वंद्या मन घरी अधिक उल्लास ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130