Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 107
________________ १०१ श्रीजिनवरने वंदन करतां, होवे अति आणंदो रे ॥ भ०२॥ त्रणसे अठोत्तर जिनप्रतिमा, सामलपासनी पासे । श्रीमहावीर पासे ब्यासी जिनवरK,वंदो मन उल्लासे रे॥भ०३।। देहरासर तिहां दोय अनोपम, रूप सोवनमय काम । सोवन रूप रयणमे प्रतिमा, दीसे अति अभिराम रै।।भ०४॥ अजुवसा पाडामां प्रतिमा, सत्तोतर सुखदाइ । पीतलमे श्रीविमलजिणेसर, वंदो मन लय लाइ रे ॥भ०५॥ दोसीकुंपाना पाडामांही, ऋषभ जिणेसर सोहे । सुखदायक जिन सोल हे सुगुणनर, देखी जन माहे रे।भ०६॥ वसोवाडे दोय शत अठावीस, शांतिजिणेसर सामी । ओगणीस जिनमुं दोसीवाडे,ऋषभ नमुं सिरनामी रे ॥७॥ आंबादोसीना पाडामांही, मुनिसुव्रत जिन सोल । पंचहटीए एकसोने वीस,ऋषभजिणंद रंगरोल रे।भ०८ घीयापाडामां दोय देहरां, शांतिनाथ पार्श्वनाथ । एकसो त्रेवीस तेर प्रतिमा, मुगतिपुरीनो साथ ॥भ० ९॥ एकसो छन्नु रिषभजिणंदमुं, प्रतिमा कटकीये वंदी। धोलीपरवमां ऋषभ मुनिसुव्रत छेतालीस चिर नंदीराभ०१० १ 'नेउ जिनसु' ए पण पाठ छे. २. 'वीस' एवो पण पाठ छे.

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