Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 95
________________ अवर ठामे जेह देहरा । देहरासर पार ज नही। अगतिभावई ऊलट आणी । आदर करि बंदउ सही॥८६॥ ॥ गुरुजी रे वडामण९ ए ढाल ॥ २२ ॥ कतपुरि देहरइ दीठडा तु । शांतिजिणेसर भावइ रे । एक जिनवर तिहां वंदीआ तु । समोसरण हिवइ आवि रे।८७ जिनजी रे तुम्ह गुण घणा तु । गातां नावइ पार रे। चंद्र किरण जिम निरमला तु । मुगताफल जिम सार रे । ॥आंचली। पढम जिणेसर पूजीइ तु । सात जिणेसर चंगइ रे। रूपपुरि रंगई आवी तु । पास भेटया मनरंगई रे ॥८८जिन छिउत्तरि जिणंद पूजीआ तु । भमतीई जिन चउवीस रे । बीजइ देहरइ ऋषभजिन तु। बइ पडिमा नामउं शीस रे।८९जिन० महिता डुंगरि घरि भणुं तु । अजितजिणेसर देव रे।। छासठि जिणंद अरचीइ तु । सेठि बोघा घरि हेव ।९०निन चुवीस जिणंद निरपीआ तु । सेठि गणराज घरि आवउ रे । इसठि जिनवर तिहां अछइ । सेठि वस्ता घरि भावउ रे ॥९१ शांति जिणेसर पूजीइ तु । इग्यार जिनवर सार रे। सेटि जगू देहरासरई तु । चुत्रीस जिन उदार रे॥१२॥जिनक बुहरा सांडा देहरासरि तु । पास जिणेसर देव रे । उगणच्याली सइ जिनवरा तु । गौतम की नइ सेव रे ॥९३-१

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