Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library
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७१
मेघा पारषि घरि अछइ चंद्रप्रभ जिन देव । पांच ज प्रतिमा प्रणमीअ आव्या घूसीनइ गेह। दोइ जिणेसर बंदीअ कीधा निरमल देह ॥ ३८ ॥ सहासीराज देहरासरि संभव जिनवर होइ। प्रतिमा बिसई पंचावन भवियणभावई जोइ ।
जडानइ पाकि सारंग देहरासर तेह । नव प्रतिमा नमी करी बंबडावाडउ जेह ॥ ३९ ॥ विश्वसेन-नंदन निरपीआ परपीआ नवाणउं देव । मंडप रचना चउकीअ हईडं हरिष्यु ए हेव । वडी पोसालनइ पाटकि सेठिं सोमानइ गेह। ऋषभादिक जिन चउत्रीस दीपइ सुंदर देह ॥ ४० ॥ भुजबल सेठि देहरासरि बिंब श्रेयांसस्वामी। पंचइ पडिमा रयणमइ त्रणि अवर जिन पामी ॥ वाडीअ पुरवरमंडण नयणे निरच्या आज । वीजा जिनवर पंच ए सारइ वंछित काज ॥४१॥ सहसा पारषि घरि नमउं पास जिणेसर भावि । तेर प्रतिमा अवर अछइ ऋषभनइ देहरइ ए आवि । तेर जिणंद तिहां निरपीआ हम्पीआ मानव मन । भावई पूजा जे रचइ तेहना जनम ए धन्न॥ ४२ ॥

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