Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 72
________________ चौद प्रतिमा तिहां वंदी करी । रायमल देहरासर हईइ धरी। ऋषभादिक जिन छत्रीस तिहां । एक रत्नमय वली छइ जिहाद त्रीजइ देहरइ आव्या जाम । पास जिणेसर भेट्या ताम । अंजनगिरि कइ मेरु सुधीर । जाणे उन्नत जलधर खीरा॥७॥ सतर भेद पूजा सुविशाल । कीजइ भावई रंग रशाल। ऋषभादिक जिन इतालीस । भगतई भावई नामुंशीस८॥ सहा धनजी देहरासर दीठ । नयणे अमोय रसायण पईट । ऋषभादिक प्रतिमा इग्यार । चुवीसवटु छइ एक उदारा॥९॥ मेलाविसा देहरासरि आवि । ऋषभादिक बासठि नमु भावि। विसा भीमा देहरासर सार । ऋषभादिकजिन त्रीस विचारि ॥१०॥ दोसी राजू देहरासर देषि । अठावीस जिनवर हरषई पेषि । रतन संघवी देहरासरि जिणंद । पंचवीस जिन दीठइ आ __णंद ॥ ११ ॥ ॥वस्तु छंद ॥ सकल जिनवर २ पाय पणमेवि । सरसति सामिणि मनि धरी । सुगुरुपाय पणमेवि भत्तिइं। चैत्यपरिवाडी पत्तनह करुं कवित नवनवी जुत्तिई । ढंढेरवाडइ जुहारीमा सकल जिणेसर देव । पंच सया छपन्नया तिहुश्रण सारइ सेव २॥१२॥

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