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जैन मंदिरोना ना समृद्ध दशान प्रस्तुत
लगभग सत्तरमी सदीना छेडा पर्यन्त चालु रही, आ लगभग त्रणसो वर्ष जेटला लांबा गालामा प्रस्तुत नवीन पाउणमां सेकडो देहरां अने हजारो प्रतिमाओ बनी चुकी हती, लीलुं झाड प्रचण्ड पवनना झपाटाथी पडी जतां तेनाज मूलमाथी फूटेला फणगा कालान्तरे मूलवृक्षनुं रूप धारण करे छे, ते ज ते प्राचीन पाटण अलाउद्दीनना अन्यायनो भोग थह पडतां तेना ज सीमाप्रदेशमा नवं वसेलु पाटण कालान्तरे एक समृद्ध नगर बनी पोतानी पूर्व ख्यातिने ताजी राखबा समर्थ थयु. प्रस्तुन चैत्यपरिवाडी ते आ बीजा पाटणनी समृद्ध दशाना समयमां बनेली तात्कालिक जैन मंदिरोनी नोंध वा 'डीरेक्टरी' समान छे,
कर्ता अने समय-निर्देश. आ चैत्यपरिवाडीना कर्ता कोण छे अने तेमणे आ परिवाडी क्यारे बनावी इत्यादि हकीकत तेमणे पोते ज समाप्तिलेखमां जणावा दोधी छे, जेनो सार आ प्रमाणे छ
'पूनमिया गच्छनी चन्द्र(प्रधान)शाखामां भुवनप्रभ. सूरि थया, तेमनी पाटे कमलप्रभसूरि अने कमलप्रभनी पाटे आचार्य श्रीपुण्यप्रभसूरि थया, पुण्यप्रभना पट्टधर विद्याप्रभसूरि थया, विद्याप्रभसूरिना' पट्टधर शिष्य श्रीललितप्रभ सूरि थया, ते ललितप्रभसूरिए विक्रम संवत् १६४८ ना आसोज वदि ४ अने रविवारने दिवते अणहिल पाटणमां आ पाटणनी चैत्यपरिवाडी बनावी.'
१ सं. १६१७ ना कार्तिक सुदि ७ ने शुक्रवारने दिवसे पाटणमां उपाध्याय श्रीधर्मसागरजीने संवयहार करनार जुदा जुदा गच्छोना १२ आचार्योमा आ विद्याप्रभसूरि पग सामेल हता।