Book Title: Patan Chaitya Pparipati
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Hansvijay Jain Free Library

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Page 19
________________ जैन संघ राजा उपर भारे गुस्से थयो,एटलुज नहिं,पण सेंकडो जैन कुटुंबो विमलनु अनुसरण करी पाटण छोडो चंद्रावतीमां जइने वस्यां.जो उपरनी हकीकत साचा इतिहासमांखपती होय तो कहेवू जोइये के पहेला भीमदेवना वखतमा पाटणनी जैन वसतिमां कंइक भंगाण पड्युं हशे ज, परंतु आ बनाव साचो होय तो पण तेनी विशेष स्थायी असर थइ जणाती नथी, कारण के ते पछीना चौलुक्य राजा कर्णदेव, सिद्धराज, कुमारपाल विगेरेना राज्यकालमां पण लगभग तमाम राज्य. कारभार जैन मंत्रिओना हाथमां ज हतो, एरलु ज नहिं पण सिद्धराज के जे शैवधर्मी हतो छतां जैनधर्म अने जैनध. मीओने घणु ज मान देनारो अने जैन विद्वानोने पूजनारो हतो ए उपरथी समजाय छे के पाटणमां जैनधर्मनी प्रवलता घणा लांबा काल सुधी टकी रही हती. कहेवाय छे के एक समये प्रसिद्ध आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिनुं पाटणमां आगमन थयु त्यारे १८०० अढारसो कोटिध्वज शेठिआओ राजशेखरसूरि वि. सं. १४०५मां रवेला प्रबन्धकोषमांवस्तुपालप्रबन्धमां-प्राग्वाटवंशे श्रीविमलो दण्डनायकोऽभवत् । स चिरमर्बुदाधिपत्यमभुनक् गूर्जरेश्वरप्रसत्तेः' अर्थात् ‘गूर्जरेश्वर (भीमदेव) नी प्रसन्नताथी विमले लांबा समय सूधी आबू उपर आधिपत्य भोगव्युं हतुं.' एम जणावे छे. आ उल्लेख जोतां विमलने भीमदेव साथे वैमनस्य थवाना वृतान्त माटे सन्देह राखवो पडे छे. -ला. भ. गांधी ]

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