Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
View full book text
________________
५६
पण ते हिंसा करता नहिं, तो तेथी उत्कृष्ट वर्णवाळाए ते केम मान्य करी शकाय ? माटे राजाए अहिंसा धर्म प्रवर्ततां कोइ पण शास्त्रनी आज्ञा तोडी गणाय नहिं. अने जो आज्ञा त्रूटती होय तो पूर्वे मोटा थ गयेला राजाओए अहिंसा धर्म प्रवर्तावेल छे. ते सर्वे महात्मा भगवान्ना परम भक्त गणायाथी मोक्षने पाम्या छे. ते वात नहि बनते.
५ प्रश्ननो उत्तर.
हिंसानो त्याग करी अहिंसामांथी थता धर्मनुंज राजा आचरण करे ते राजाने, तथा तेनी प्रजाने संपत्ति मळे छे, ने कोइ जातनी आपत्ति आवती नथी. अहिंसाथी केवळ सुखनी उत्पत्ति छे, ६ प्रश्ननो उत्तर.
देवीने उद्देशेज हिंसा करवामां आवे छे, ते तो घणुंज अकार्य छे कारण के देवी त्रिगुणात्मक भगवत स्वरूपनी शक्ति छे तेनुं देवोनी साथे सात्विकपणाथी पूजन छे. मार्केड पुराणमां देवीने कोइ ठेकाणे तामसी देवतुल्य गणी नथी. माटे सात्विक देवनुं मांसादिकथी पूजन होयज नहिं अने जेकरे छे ते तो पोताने मांस भक्षण करवाना हेतुथी पूजनमां लावे छे. भागवतमां जडभरतना आख्यानमां म्लेछनो राजा भद्रकालीने अर्थे पशुमारवा जतो हतो तेमांथी पशु जतुं रह्यं तेने बढ़ले जंगलमांथी भरतजीने पकडी गयो अने देवी पासे जइ तेनो वध करवा मांड्यो, के तरत देवीए कोप कर्यो. माटे जो देवी प्रसन्न थती होय तो म्लेछनो नाश करत नहिं वली तेमां कोइ एवं पूछशे के जे राजाओ देवीना निमित्ते हिंसा करेछे, तेमने केम कांइ थतुं नथी. ते विषे आम समजवानुं छे जे राज्य पदवी कई थोडा तप के सुकृत्यनुं फल नथी पण महा उग्र अने उत्कृष्ट धर्मनुं फल छे. तेथी पूर्वना पुन्यना जोगे करीने हाल कशुं विघ्न जोवामां आवतुं नथी तेथी करी हिंसानी प्रवृत्ति कर्या करे छे. तेथीज राजाने अन्ते केटलाक राज्यने अघो नर्क भोगववुं पडे छे. एम अनेक शास्त्रों कहे छे. माटे देवीने सारा पदार्थ अन्नादिकथी बलिदान आपहुं अने कढ़ी पोताना मनमां हिंसानो घणो आग्रह होय तो कूष्मांडादिक फलनुं नैवेद मुकवं तेथी कोई शास्त्रनी आज्ञानो भंग कर्यो कहेवाय नहिं. वली देवी जगत् जननी कहेवाय छे. जगतमां स्थावर जंगम बे जातनां प्राणी छे. ते सर्वे तेना संतान छे. माटे ते पोताना निरपराधी संतानोना घातथी पोते प्रसन्न था ज नहीं. माटे कोई प्रकारे देवनीके शास्त्रनी आज्ञानो भंग थतो नथी.
७ प्रश्ननो उत्तर.
कारण
पशु हिंसाने बदले पशुना नाक के कान छेदवामां आवे ए प्रश्ननुं कांई उचित प्रयोजन नथी. जे पुरुषने हिंसामाथी निवृत्ति पामवानो उद्देश छे तेने तो पशुने विरूप करवानुं कांई प्रशस्त नथी. तो पण जो मनने अस्थिरपणुं भासतुं होय अने उपरना शास्त्रोना अभिप्रायमां शंका थती होय तो नाक कान छेदवाथी क्रिया थई कहेवाय छे, अने एवी रूढी पण केटलेक स्थले चाले छे. पण मारे धारे तो ते पण क्रिया बंध करवा लायक छे.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com