Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
View full book text
________________
२ वीजा प्रश्ननो उत्तर. आर्य लोकोमा सर्व मान्य अथवा बहु मान्य अपौरुषेय वेद (जे संहिता विभाग ) तेज गणाय छे. केमके एमां इश्वरना गुणकर्म अने स्वभाव तथा सृष्टिक्रम विरुद्ध लेखन नथी. माटे सर्वमान्य एज गणाय छे. ने ब्राह्मणादि पौरुषेय ग्रन्थोनो जेटलो वेदानुकूल विभाग तेटलोज सर्व मान्य थइ शके बीजो नहीं. माटे स्वतःप्रमाण वेदरूप शास्त्रोने वेदान्त दर्शनमां व्यास महामुनिए मुख्य शास्त्र मान्युं छे. तथा शास्त्रयोनित्वात् ए सूत्र उपरथी श्री शंकराचार्ये जे भाष्य कीधुं छे, तेनी मतलब ए छे के ऋग्वेदादि शास्त्रनुं योनि (कारण) ब्रह्म छे. माटे एज शास्त्र सर्व मान्य तथा बहु मान्य गणाय छे. ए वेद शास्त्रोनां राजधर्म प्रकरणमां दिन परोपकारी पशुओना विजया दशमी आदि पर्वोपर हिंसा जणाती बथी. माटे सर्वथा ताज्य छे.
३-त्रीजा प्रश्ननो उत्तर वेदशास्त्रना प्रमाणथी (स्मृति ) धर्म शास्त्रनुं प्रमाण उतरतुं गणाय, ने तेना करतां पुराण कनिष्ट गणाय छे, एम शास्त्रकारोनो सिद्धान्त छे यथा
श्रुति स्मृतिः पुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते
तत्र श्रौतं प्रमाणंतु तयोद्वैधे स्मृतिर्वरा ॥ १ ॥ अर्थात् वेद धर्मशास्त्र तथा पुराणोमा एक ज विषय निर्णय करवामां विरोध आवी पडे तो श्रुति प्रमाण प्रबल छे अने स्मृतिप्रमाण तथा पुराण प्रमाणमां विरोधआवी पडे तो स्मृतिप्रमाण श्रेष्ठ गणाय छे. फलितार्थ ए आवे छे के सर्व करतां वेदतुं प्रमाण श्रेष्ठ सर्व विद्वानो मानता आव्या तथा हाल माने छे. हवे वेदमां एवा विजया दशमी उपर पाडां बकरादिनी हिंसानो विधि जणातो नथी. निषेध मंत्रो घणां जणाय छे. “यथा, यजमाना पशूनपाहि" यजुर्वेदे अ० १ ० १ अर्थः-इश्वर आज्ञा करे छे केयजमान नाम जे यज्ञ यागादि कानार विद्वानोने सत्कार करनार-संगति करनार यजमान क्षात्र धर्मी राजपुरुष, पशु रक्षणकर. एवी ईश्वरनी हिंसा न करवा रूप आज्ञा जणाय छे. वली यजुर्वेदना ४० मा अध्यायमां तो मनुष्य मात्रने माटे अहिंसा लखी छे, तो राज्य पुरुषोने राज्यना कोई पण जातना भलांने माटे श्वासवान् दीन परोपकारी प्राणीने वध करवो शी रीते संभवे ? यथा असुयानामते लोका अन्धेन तमसा वृता॥ता स्तेप्रेत्यापिगच्छन्ति येके चात्महनोजनाः॥अर्थात्जे मनुष्यो श्वासवान् जीवोने एटले निरपराधी मनुष्य पश्वादि प्राणीओने ठार मारे छे तेनुं गति अर्थात् ज्ञान नहीं एवी अंधकारमय एटले अज्ञान वेष्टित् पश्वादि योनिने प्राप्त थाय छे. माटे ए अपौरुषेय वाणीने, मान्य करी क्षमा एवा हिंसादि दोषथी बची इहलोक परलोकनी हानी न करवी एवी प्रबलं शास्त्रनी आज्ञा छे.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com