Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
View full book text
________________
सोनानो मेरुपर्वत जेवडो ढगलो करी दररोज अखंड दान आपे तोपण एक जीवने हणता मुकाववो ते अभयदान कहेवाय, तो ते उपरना सोनानुं दान अभयदाननी लेश पण गणत्रीमां आवतुं नथी. २ मननो मेल मूके तेनेज स्नान कर कहेवाय. प्राणिजीवोनी रक्षा करवी तेनेज दान कहेवू, ज्ञानरूपी तत्व अंतरआत्मामां धारण करवु, निर्मळ एटले चोख्यु एनेज धर्म तथा ध्यान कहेवाय छे ३॥
५-तेवी हिंसानी जो प्रवृत्ति करवामां न आवे तो राजाने के प्रजाने अथवा तो राजाने अंगे कांईपण पराभव न थतां घणोज लाभ तथा राजनी वृद्धि तथा लक्ष्मीनी वृद्धि पुत्र पौत्रादि वृद्धि तथा ते राजा घणाज प्रतापी तथा नीतिवंत गणायाछे. तेम राजा अंगे आरोग्यता रहे आफत न आवे एवं बलवान् शास्त्रोमां कहेलुं छे तेविषे आधार कृष्ण यजुर्वेदना तैत्तिरियारण्यकना दशमा प्रपाठकना ६३ मां अनुवाकमां कहयुं छे के.
सूत्र ४ धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा लोके धर्मिष्टं प्रजानुपसर्पति धर्मेण पापमनुर्विदंति धर्मे सर्व प्रतिष्ठितं
तस्माद्धर्म परमं वदन्ति ॥ १५॥
धर्म सर्व प्राणिने आश्रय छे. जगतमां धर्माधर्म जाणवा माटे लोको धर्मिष्ठनी पासे जायछे धर्मे करी पापने टालेछे ने धर्ममां सर्व रहयुं छे. माटे धर्मने श्रेष्ट कहेलछे पण ए धर्म शुं छे. ते सर्व मनुष्ये जाणवु अवश्य छे. माटे आपस्तंब धर्मसूत्रना प्रथमप्रश्नना सातमा पटलमा कहयुं छे के
सूत्र ५ यं त्वार्याः क्रियमाणं प्रशसन्ति स धर्मों यं गहते सोऽधर्मः ॥१६॥
अर्थ जे आचरणने आर्यपुरुषो वखाणे ते धर्म अने जेने निंदे ते अधर्म कहेवाय छ. ने वली वैशेषिक दर्शनना पेहेला अध्यायना प्रथम आन्हिकमां कहेल छै के.
सूत्र ६ यतोभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः ॥ १७ ॥ अर्थ-जेनाथी उदय तथा कल्याण थाय तेज धर्म.
६-आपणा आर्य हिंदुशास्त्रने विषे जे पर्वो आवेलां छे ते सर्वे घणाज उत्तम दिवस छे माटे ते पर्व आराधवाने दिवसे त्रण शब्द कह्या छे ते आराधवां (दया, दान अने दमन ) ए त्रण शब्द मूळधर्म शास्त्रथी उत्पन्न थया छे. तेनो अर्थ एवो छ के, सर्व जीवो
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com