Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 249
________________ बळी- श्रीमतो पण एज सिद्धांत छे के पशुहिंसा न करवी. वेदना अभिप्रायने न जाप्पनार एका मौन पुरुषो वेदधर्मने प्रधान कहे छे ते पुरुषो अग्निसाध्य कर्मे करीने नाश पाम्यो छे विवेक जेमनो एवा थईने घूम्रमार्गे करीने गति करे छे. पण पोताना खरा तत्वने. जाणी शकता नथी. अने वली मानी, शठ अने लोभी एवा पुरुषोज वेदनुं रहस्य जाण्यां विना पशुनो द्रोह करे छे ते पशु पाछा जन्मांतरमां वेर ले छे माटे, देवताना पूजनमां मांस न आपवुं. देवतामात्र जेवी प्रीति सुंदर भन्नघडे थाय छे तेत्री प्रीति कोई काळे पशुहिंसावडे थतीज नथी. - सप्तर्षि तथा सूर्यना रथनी आगळ चालनार वालखिल्यादि मुनि तथा मरीचि आदि मुनि ए सर्वे अहिंसक पुरुषोनी प्रशंशा करे छे. पोताना मांसने एटले शरीर ते परमांस वडे एटले पशु आदिकना मांस वडे जे वधारवानी इच्छा करे छे. निश्चे अतिषे कष्ट पामे छे एम नारदस्मृतिनुं वाक्य छे. जे पुरुष मांस भक्षण नथी करतो तथा पशुनी हिंसा करतो नर्थी तथा करावतो नथी ते सर्व भूत प्राणीमात्र पूज्य छे. एम आद्यमुनि केतां स्वयंभू मनुनुं वाक्य छे, जे पुरुषे मद्यमांसना त्याग कर्यो । छे ते दाता छे. तेज पुरुषे यज्ञ कर्यो एटले देवपूजन कर्यु एम जाणवू, तथा ते पुरुषने तपस्वी जाणवो ए प्रकारनुं बृहस्पतिस्मृतिनुं वाक्य छे. भीष्मपिता युधिष्टिर राजा प्रत्ये कहे छे के जे पुरुष अश्वमेधयज्ञ करीने महान् महान् देवपूजन करे छे. अने जे मांस भक्षण नथी करतो ए ते पुरुषतुल्य है. एटले जे पुरुष अहिंसक छेतेने प्रतिमासे अश्वमेध यज्ञनुं पुण्य थाय छे. 'जे पुरुष प्रथम अज्ञानथी मांसभक्षण करीने पछी निवृत्ति पामे छे एटले त्याग करे छे, ते पुरुष जो फरीथी मांसभक्षण न करे तो मांसभक्षणथी सदा निवृत्ति पामेला पुरुषो जेवुं फळ थाय छे तेवुं तेने पण थाय छे. जे विद्वान् पुरुष सर्व भूतप्राणिमात्रने निरंतर अभयदान आपे छे तेज विद्वान् मानवा योग्य छे, तथा विश्वास करवा योग्य छे तथा तेनो क्यारे पण पराभव न करवो. जेवो पोतानो प्राण पोताने प्रिय छे तेवो बीजानो पण प्रिय छे एम जाणं. माटे सर्व देह गरिने मृत्युसमान बीजुं दुःख नथी. ब्रह्मस्वरूप निष्ट एवा त्यागिमुनिने पण पोताना वधकाळने विषे प्रसन्नता धनी नथी. एटले देहथी जुदो आत्मा छे एवा आत्मज्ञानिने पण वध कालने विषे जेवी प्रथम प्रसन्नता हती तेवी प्रसन्नता रहेती नथी. अनेक कारण मांटे धर्मशास्त्रमां ब्रह्मनिष्ट मुनिना वधने विषे ब्रह्महत्या करतां पण अतिशे अधिक पाप कह्युं छे. तथा विंदेह मुक्तना वधमां पण अतिशे अधिक दोष निश्चये थाय छेएम कह छे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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