Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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श्रुतिः स वा एष पशुरेवालभ्यते यत्पुरोडाशस्तस्य यानि किंशारुणि तानि रोमाणि ये तुषा सा त्वग्ये फलीकरणाः तदः सृग्तत्पिष्टं किन्कसास्तनमांसं यत्किचित्कं सारं तदस्थी स वेषां वा एष पशुनां मेधेन यजते यः पुरोडाशेन यजते तस्मादाहुः पुरोडाशसंत्रं लोक्थमिति ॥
टीका — इसका विचार ऐसाकी पशु संज्ञासे मनुष्यादिक सब प्राणीमात्र है. लेकीन इनके शरीरभाग अमेध्य अर्थात् अपवित्र है. इसके वास्ते यज्ञ निमित्तसे उसपर बाद लिखके मुख्य पुरोडाश ग्रहण करनेकुं मेध्य होना सौ, सोंलमे सपडा करके, श्रुतिमें कहा है की भात कणके उपरके कुसल ओई रोम है. और तुष अर्थात् जो छीलपट- सोई धर्म है. इस तरह से जो मेध्य अर्थात् पवित्र पशु तो भातकण है. करके उस भातका पशु बनाके उसे यज्ञ करना, और यज्ञका शेष भाग खाना, इसतन्हे से बेदमें पशुहिंसा करनेका कह्या नहीं है. मांस खानेका का नहीं है.
दुसरा प्रमाण — ऋग्वेदमें आश्वलायन शाखाके दुसरे पचकके आठमें खंडमें मेध्य और अमेध्य इसका विचार करके आरंभनका विचार कहा है.
श्रुतिः–पुरुषं वै देवाः पशमालभंत तस्मादाधाम् मेघ उदक्रामत तस्मात् एतेषां नाश्नीयात् इसका विचार ऐसा की, जहां अभेध्यका और यज्ञोका विचार दीखाया है, उस ठिकाने सर्व जीवोंका आलंभन करनेका कया है तो, कोई ही तिवारकुं जो पशुहिंसा करते है. और यज्ञो निमित्त जो हिंसा सो न करके लिखी हुई माफक क्रिया करे तो सब क्रिया बरोबर होती है अन्यथा नही होती ये सिद्धान्त है. ॥ ६ ॥
प्रश्न ७ का उतर.
पशुका आलभन करनेसे अर्थात् हृदयका स्पर्शमात्र करनेसे सबक्रीया बरोबर होती : अन्यथा नहीं होती ये सिद्धांत है. प्रश्नके उत्तर खलास हुवें है.
सो पुरुष श्रेष्ट है.
सारासार विचारका सारांश देखीये - आपके प्रश्न देखकर बहोत मानंद हुवा, क्यों की जो पुरुष वेद और शास्त्रोंकी मर्यादा त्यागनेका भय मानता है, जो दुसरेके दोष आपणे सौर मानके उससे भयदायक होता. प्रजाके व्यवहार या मंत्री आदि लोकोके व्यवहारका गुण-क्षेत्र रहना. सो अर्ध प्रबुद्धपणा है. तो मापने आपके कर्तव्यकर्मण गुणदोषका विचार
अर्थात् सम्यके व्यवहार, या
आपणे सीस्मान के भगदायक
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