Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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नं. २४.
एवलावासी रजपूत शंकरसिंह छहुसिंहनो अभिप्राय,
श्रीमत् सकलगुणालंकृत अखंडितराज्यलक्ष्मी विराजमान महाराजश्री १०८ महाराजा मोहन देवजी संस्थान धर्मपुर.
आपके प्रश्नों के उत्तर और सारासार विचार सारांश कहा है सो कृपाकटाक्षसें निष्पक्षपातसे निरीक्षण करीए.
प्रश्न १ का उत्तर
पशुहिंसा करने का कोई बेदमें वा शास्त्रमें कह्या नही है, जो विद्यापद्धति, लीलापद्धति, श्रीपद्धति, यादी शास्त्रों की साकही है. लेकीन, पशुहिंसा सत्यशास्त्र और उक्त नही है. प्रश्न २ का उत्तर-
जो शास्त्रमें हिंसा कही है, जो मतवादी वो शास्त्रके अनुयायी है उनीकुं मान्य है और किसी मान्य नही है.
प्रश्न ३ का उत्तर-
सर्व प्रकार के शास्त्र, और नीश्वास, बेद, इनसबसे श्रेष्ठशास्त्र, जो श्वासत्पद कृष्ण परमात्मा वाक्य, अर्थात् भगवद्गीता है उसमे हिंसाका निषेध करके स्वधर्म प्रतिपादन किया है. गीताध्याय ३ श्लोक ३५.
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्टितात् । स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥
अर्थात् जो आपना स्वधर्म है. और उसमें गुणहीन कर्म है, तोभि कल्याणकारक होता है. और परधर्म गुणयुक्त है, तोभी करना नही. भयका कारण है. ये रातीसे हिंसा और अहिंसा प्रतिपादन कला है. और देखो जो भगवानने कशा है की, ईश्वर निमित्त हिंसा घडती है. उसके बास्ते वैश्वदेव करनेका कया है; तो हिंसा करने कैसे कहेंगे. ईश्वर
निमित्त पंचसूना दोष की स्मृति
कंडनी पेषणी चुल्ली उदकुंभी च मार्जनीः पंच सूना गृहस्थस्य ताभिः स्वर्गं न विंदति ॥
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