Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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तिमोनां अनुकूळ जुदां जुदां पुस्तको लखायेलां होवाथी ते सघलां पुस्तको सामटा लई साम्प्रत कालनी स्थितिने बंधबेस्ता करवानी गोटवण करवी; ए नहिं बनी शकवा जेवू प्रतीत थाय छे.
केमके जूदा जूदा कालमा नूदी जूदी बाबतो उपर प्रकृति भेद थयेथी भने ते समयनी प्रकृति भेदनी लामणीधी बख़ाएलां पुस्तको त्रण काळनी जूदीजूदी लागणीओने अबाध केम थई शके 2 खलं कहेता एवा जूदा जूदा कालमां पुस्तको लखाई जूदा जूदा हजारो धर्ममतो आपणा देशमां उभराई गयाछे. केटलाक तो नष्ट थई गया के जेओना नामो सिद्धान्तोथीज आपणे जाणी शकीए छीए तेम केटलाक नवीन पण उत्पन्न थयाछे अने केटलाक आगला मतोनो धीरे धीरे नाश थतो जायछे.
तेवी स्थितिमां शुं धर्म ? अने अधर्म: एनो निर्णय करवो, ए पठित धर्मजिज्ञासु द्विजोने पण श्रमसाध्य थई पड्युं छे. तो पछी अपठित मोटा वर्ग माटे शुं कहेवू ? अने प्राचीन ग्रंथोना पठितोमां पण मोटो भाग एकदेशी विद्वान होयछे अने ते वली देशना प्रमाणमा धणो जुजमागज. अने ‘तेमां वली संबन्धे विचार करी निर्णय करनारा थोडाज. तेमाएलो मोटो भाग तो यजमान कहे तेम करे अने तेने राजी राखनारो अने आस्तिक बुद्धि रहित अने धनलोभी वा मिथ्यामानी तेओनो मोटो भाग गणायछे. अने केटलाक लोको तो ते मांहेला तेओनी मन शक्ति खीलेली न होवाथी पोते आडे रस्ते उतरी यजमानोमां पण पोते अधर्मने धर्म समजी जेम वर्ते छे तेमज धर्म प्रचार करवानी पेरवी करेछे. तो पछी यजमानो के जेओनो संस्कृत विद्याथी अज्ञात भाग तेओए धर्म निर्णय केम करवो ? ए एक मोटो सवाल उभो थायछे.
केमके हाल सघला पंडितो तो कोई नहींतर कोई पण मध्य कालना नवीन मतावलंबी होयछे. तेथी जो बहुमते कोई धर्म विषय मानवामां आवे तो जे मतना घणा पंडितो होय ते मत स्वीकार थई जवानो भय रहेछे. तेथी हाल जेओ घणा खरा धर्म जिज्ञासु छे; तेओने तो जो यथार्थ निर्णय करवो होय तो पोताने खुब अध्ययन करी जेजे विषय जाणी लेवानी इच्छा थाय ते पठन करी निश्चय करीलेवा जेवो समय आवी पहोंच्योछे.
ते छतां पण जो आपणे आपणने ईश्वर बक्षेली विचार शक्ति खीलावी जोईतो उपयोग करीए तो तेथी पण केटलेक अंशे आपणे आपणो अभीष्ट विषय जाणवाने शक्तिवान थई शकीए छीए. परन्तु तेम करवामां पांच प्रकारे परीक्षा करवानी अपेक्षा उमी थायछे.
तेमा प्रथम ईश्वर तेना गुण, कर्म, स्वभाव अने तेनी प्रेरित वेदविद्या जाणवी जोईए. केमके ईश्वर संबंधी ज्ञान थयाथी ते, तेने यथार्थ समजी तेनी उपसना करवा योग थई शकेले. तेथी द्विजोने जनोई आपती वखते-जे गायत्री मंत्रनो उपदेश करवामां आवेळे अने जे मंत्रनो सविस्तर अर्थ गोपथ ब्राह्मण नामना पुस्तकमां छे ते जो कोई सारा विद्वान् द्वाराए अवणकरे भने पछी उपनिषदादिमां माहितगार थाय तो शुं उपासनीयछे ? तेनो ख्याल तुर्त
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