Book Title: Pashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Author(s): Jain Shwetambar Conference
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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३ त्रीजा प्रश्नना जवाबमां लखचानुं के - ते शास्त्र करतां हिंसाने निषेध करनारा बीजा बलवान् शास्त्रना ग्रन्थो घृणा छे. तेमां एवीरीते हिंसानो निषेध कर्यो छे के जेथी फरीने हिंसात्मक क्रिया उज्जीवन थइ शकेज नहीं. ते ग्रन्थो मांहेला जो अत्यारे प्रमाणो आपवा बेसीए तो एक मोटो ग्रन्थ भराय तथापि केटलोएक संक्षिप्त सार नीचे प्रमाणे आएं हूं.
हिंसानो निषेध करनारा ग्रन्थोमां वेदना उपनिषदों, भगवद्गीता, श्री महाभारतनो मोक्षधर्म इत्यादि घणा ग्रन्थो मुख्य मुख्य गणाय छे. - तेमां उपनिषद् अने भगवद्गीता निवृत्तिमार्गनो आश्रय लइने सकामी पुरुषोनी कर्म निमित्त हिंसानो निषेध करे छे-मोक्षधर्ममां अध्याय २६२ मां श्लोक २८, २९, ३१, ३२।३३।३५।३६—–आटला श्लोकोमां तुलाधार अने जाजलिना संवादमां श्रुतिना प्रमाण साथै हिंसा कर्मनो निषेध घणी सारी युक्तिथी कहेलो छे. प्रथम अभयदाननुं महात्म्य वर्णवी हिंसा बोध करनारी श्रुतिओने तोडवाने माटे नीजी श्रुतिओ आपीने आपणा सर्व मान्य अहिंसा धर्म प्रतिपादन करेलो छे. मोक्षधर्मना अध्याय ६३ ना श्लोक ६ मां हिंसा करनारा अज्ञानी कर्मठीओनी निंदा करी छे. अने ते पछी श्लोक ८ आठमामां - यज्ञनुं प्रवित्र हव्य नमस्कारात्मक, स्वाध्यायात्मक अने औषधात्मक, एवा त्रण भेदथी बतावी ते हव्यथी यज्ञ करवो पण पशुरूप हव्यथी नहीं एम साबित करेलुं छे. ते पछी श्लोक ३८ मामां श्रद्धाथी थतो यज्ञ ते यज्ञ कहेवाय नहीं पण अयज्ञ छे, एम बतावी एक गायथीज बधी क्रिया पूर्णताने पामे छे-तेवं श्रुतिनुं प्रमाण आपीने ग्रन्थकर्ता हिंसाना यज्ञनो निषेध बतावे छे. त्यारपछीना श्लोक ४० मां यज्ञना करतां पुरोडाश पवित्र छे, एम श्रुतिथी सिद्ध करी पोताना अहिंसात्मक सिद्धान्तने ग्रन्थकर्ता प्रगट करे छे. आवा हिंसाने निषेध करनारा सेंकडो ग्रन्थो आर्य तनुजोने एवा निंदित कर्मथी वारवाने पोताना प्रमाणोथी पोकार कर्या करे छे तथापि दांभिक कर्मठीओ समजता नथी. कदापि कोइ शंका करशे के श्रुतिओमां हिंसा पण छे खरी अने निषेध पण छे. त्यारे कई वात मानवी ? त्यारे तेना समाधानमां जणाववानुं के जे जे वाक्यो हिंसानो निषेध करवामां घणां बळवान छे, तेओनो पक्ष ग्रहण करवो, कारण के कदापि सकामी लोकोने माटे तांत्र मतथी तेवां वाक्य होय तेथी शुं ते मुख्य गणाय ? अथवा स्वीकारवा योग्य गणाय ? अर्थात नहीं गणाय. माटे सर्वने अहिंसात्मक ग्रंथोना प्रमाण एक देशी छे तेम अवश्य मानवं जोइए. महात्मा वेदव्यास जे आर्य पुराणोना कर्ता अने परमात्माना अंशावतारी कहेवाय छे, तेओए पोताना रचेला सेकडो ग्रन्थोमां हिंसानो निषेध कर्यो छे. आ विषय उपर जो विशेष चर्चा करवा धारीए तो एक मोटो ग्रन्थ थाय पण आ वखते विस्तारना भयथी अने वखतना संकोचथी आ त्रीजा प्रश्नना उत्तरमां आटलेथीज विराम पामीए छीए.
४ प्रश्रना उत्तरमां लखवानुं के राजाओने ते कर्म अवश्य कर्तव्य छे अने ते न करवामां आवे तो बलवान् शास्त्रनी आज्ञा तोडी गणाय एवं कोइ पण आर्य ग्रन्थमां निकलतुं नथी. आवा हिंसात्मक कर्म करवाने कोइपण आर्यना पूज्य ग्रन्थ फरज पाडे नहीं अने जे निर्णसिन्धुमां तांत्र मतथी
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