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श्रीमती कर्नल विलियम हण्टर ब्लेयर के प्रति
प्रिय महोदया, ___मैं इस ग्रन्थ को आपके अतिरिक्त किसके नाम और निमित्त जनता को भेट करू. कि जिससे यह और इसका कर्ता अधिक उपकृत हो सकें ? आपको समर्पण करने में मेरा दोहरा आशय है-प्राभार और अभिरुचि । इस कृति में दिए हुए रेखा-चित्रों के कारण आपकी सूक्ष्म पेंसिल के प्रति आभारी जनता तो पूर्व भाव (आभार] का ही समर्थन करेगी; परन्तु. अपर प्राशय को तो कोई मेरे जैसा व्यक्ति ही समझ पाएगा कि किसी ऐसी स्वदेश-निवासिनी महिला ने हिन्दू देव-पर्वत की यात्रा करने में मेरा अनुगमन किया, जिसमें वहां बिखरी पड़ी सुन्दरता के प्रति आकृष्ट होकर उसका रूपालेखन करने का कौशल विद्यमान है । आप पाबू गईं, इतना ही आप के प्रति सम्मान प्रकट करने को मेरे लिए पर्याप्त था; परन्तु, आपने तो इससे भी अधिक कर डाला कि आप प्राबू को इंगलैण्ड ले पाई।
प्रिय महोदया, प्रापका सच्चा विश्वासपात्र,
जेम्स टॉड
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