Book Title: Parmatmaprakash
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 30
________________ -304 : २-१६६ ] परमप्प-पयासु 293) विसय-कसायहिँ मण-सलिलु गवि डहुलिज्जइ जासु । अप्पा णिम्मलु होइ लहु वढ पच्चक्ख वि तासु ॥ १५६ ॥ 294) अप्पह परह परंपरह परमप्पउह समाणु । परु करि परु करि परु जि करि जइ इच्छइ णिव्वाणु ॥ १५६११ ॥ 295) अप्पा परहें ण मेलविउ मणु मारिवि सहस त्ति । सो वढ जोएँ कि करइ जासु ण एही सत्ति ॥ १५७ ।। 296) अप्पा मेल्लिवि णाणमउ अण्णु जे झायहिँ झाण । वढ अण्णाण-वियंभियह कउ तह केवल-णाणु ॥ १५८ ।। 297) सुण्णउँ पउं झायंताह वलि वलि जोइयडाह । समरसि-भाउ परेण सह पुण्णु वि पाउ ण जाह ।। १५९॥ 298) उव्वस वसिया जो करइ वसिया करइ जु सुण्णु । बलि किज्जउ तसु जोइयहिं जासु ण पाउ ण पुण्णु ॥ १६० ॥ 299) तुट्टइ मोहु तडित्ति जहिं मणु अत्थवणहं जाइ। सो सामिय उवएस कहि अण्णे देवि काइँ ॥ १६१ ॥ 300) णास-विणिग्गउ सासडा अंबरि जेत्थु विलाइ । तुइ मोहु तड त्ति तहिं मणु अत्थवणहँ जाइ ॥ १६२ ।। 301) मोहु विलिज्जइ मणु मरइ तुट्टइ सासु-विसासु । केवल-णाणु वि परिणमइ अंबरि जाह णिवासु ॥ १६३ ।। 302) जो आयासइ मणु धरइ लोयालोय-पमाणु । तुट्टइ मोहु तड त्ति तसु पावइ परह पवाणु ॥ १६४ ।। 303) देहि वसंतु वि णवि मुणिउ अप्पा देउ अणंतु । अंबरि समरसि मणु धरिवि सामिय गठ्ठ णिभंतु ।। १६५ ॥ 304) सयल वि संग ण मिल्लिया णवि किउ उवसम-भाउ । सिव-पय-मग्गु वि मुणिउ णवि जहिं जोइहि अणुराउ ।। १६६ ॥ ___293) c विसयकसायह; TK मणु सलिलु, उहुणिज्जइ, जि तासु. 294) Only in p, जो for जह. 295) Wanting in TKM; B मोलविउ परह ण मेलिविंउ. 296) Wanting in TKM: C झावहि. 297) Wanting in TKM; C सुह for सहु. 298) Wanting in TKM%BC जोइयहं. 299) Wanting in TKMB C जिहं for जहिं, B अत्थवणहो. 300) Wanting in TKM; B अत्थवणहो. 301) Wanting in TKM; B जाहिं for जाहं. 302) Wanting in TKM. 303) Wanting in TKM; C धरवि. 304) TKM मेल्लिया, last pada किव होसड़ सिवलाहु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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