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परमात्मप्रकाश
मलधारि बालचन्द्रका समय-अपनेको 'कुक्कुटासन मलधारि' लिखनेके सिवा इन बालचन्द्रने अपने बारेमें कुछ भी नहीं लिखा। अतः इनका समय निश्चित करना विशेष कठिन है। श्रवणबेलगोलाके शिलालेखों में व्यक्तिगत नामोंके रूपमें 'मलधारिदेव' और 'कुक्कुटासन मलघारिदेव' शब्द आते हैं किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि यह हमारे बालचन्द्रको पदवी है । संभवतः यह किसी प्रसिद्ध आचार्यका नाम था, और उनकी परम्पराके साधुगण इसे पदवीके तौरपर धारण करते थे। शक सं० १२०० (ई० १२७८) के अमरपुरम् समाधि-लेखमें, जिसमें एक जैनमन्दिरको कुछ दान देनेका उल्लेख है, बालेन्दु मलधारिदेवका नाम आता है । यद्यपि नामोंमें इन्दु और चन्द्रका परस्परमें परिवर्तन देखा जाता है फिर भी वह बालेन्दु हमारे बालचन्द्र नहीं हो सकते, क्योंकि उनके नामके साथ कुक्कुटासन उपाधि नहीं है, तथा उनका समय भी हमारे टीकाकारसे पहले जाता है। हमारे टीकाकारके बारेमें इतनी बात निश्चित है कि वे ब्रह्मदेवके बादमें हुए हैं क्योंकि उन्होंने ब्रह्मदेवकी टोकाका अनुसरण किया है, और जांच-पड़ताल करनेके बाद हमने ब्रह्मदेवका समय ईसाकी तेरहवीं शताब्दी निर्णीत किया है। बालचन्द्र कर्नाटकी थे, सम्भवतः श्रवणबेलगोलाके निकट किसी स्थानपर वे रहते थे। किन्तु ब्रह्मदेव उत्तरप्रान्तके वासी थे अतः दोनों टीकाकारोंके बीच में कमसे कम आधी शताब्दीका अन्तर अवश्य मानना होगा, क्योंकि उस समयको यात्रा आदिकी परिस्थितियोंको देखते हुए, दक्षिण प्रान्तवासी बालचन्द्रके हाथमें उत्तर प्रान्तवासी ब्रह्मदेवकी टीकाके पहुंचने में इतना समय लग जाना सम्भव है । अतः बालचन्द्रको ईसाकी चौदहवीं शताब्दीके मध्यका विद्वान् माना जा सकता है ।
अध्यात्मी बालचन्द्रको टीका-म० आर० नरसिंहाचार्यका कहना है, कि अध्यात्मी बालचन्द्रने भी परमात्मप्रकाशपर कन्नड़ीमें एक टीका बनाई थी, किन्तु इन तीनों कन्नडटीकाओंमेंसे कोई भी उनकी नहीं है। उन्होंने मुझे सूचित किया है कि कविचरितके उल्लेखोंको छोड़कर उनके पास इस सम्बन्धमें कोईभी अन्य सामग्री नहीं है । यद्यपि यह कोई अनहोनी बात नहीं है कि अध्यात्मी बालचन्द्रने कुन्दकुन्दके प्राकृत ग्रन्थोंपर अपनी कन्नडटीकाओंकी तरह परमात्मप्रकाशपर भी टीका लिखी होगी किन्तु निश्चयपूर्वक कुछ कहना कठिन है, क्योंकि एक तो कविचरितेका उल्लेख बहुत कमजोर है, दूसरे यह भी सम्भव है कि गलतीसे बालचंद्र मलपारिके स्थानमें बालचंद्र अध्यात्मी लिखा गया हो ।
और एक कन्नडटीका परमात्मप्रकाशपर दूसरी कन्नड़टीका-यहां परमात्मप्रकाशकी दूसरी कन्नड़टीकाका परिचय दिया जाता है । "इस टीकाके समय तथा कर्ताक बारेमें हम कोई बात नहीं जान सके। प्रतिके अंतमें लिखा है-"मुनिभद्रस्वामीके चरण शरण है।" इससे इतना पता चलता है कि इस कन्नड़टीकाका रचयिता या इह प्रति अथवा इस प्रतिको मूल प्रतिका लेखक मुनिभद्रस्वामीका शिष्य था।
इस टीकाका परिचय-'क' टीकाकी तरह इस टोका भी दोहोंका केवल शब्दार्थ दिया है। किन्तु इस टीकाको अपेक्षा 'क' टीकामें मूलका अनुसरण वगैरह अधिक तत्परतासे किया गया है। बिना नामकी इन टीकाओंके देखनेसे पता चलता है कि धार्मिक जनसाधुओं और गृहस्थोंमें परमात्मप्रकाश कितना अधिक प्रसिद्ध था। ऐसा मालूम होता है कि बहतसे नये अभ्यासी अपने अध्यापकसे दोहोंका अर्थ समझ लेनेके बाद अपनी मातभाषामें उनके शब्दार्थ सिख लेते थे।
अन्य टोकाओंके साथ इस टीकाको तुलना—'क' प्रतिकी टीका, ब्रह्मदेवकी संस्कृतटीका और मलधारि बालचंद्रकी कन्नड टीकाके साथ इसकी तुलना करनेपर मैं इस निर्णयपर पहुँचा हैं कि यद्यपि इसके पाठ 'क' टीका आदिके पाठोंसे बहुत मिलते जुलते हैं तथापि यह टीका ब्रह्मदेवकी बहुत कुछ ऋणी है। यतः इस टीकामें केवल शब्दार्थ दिया है, अतः ब्रह्मदेवके अतिरिक्त वर्णन इसमें नहीं मिलते।'' टीका
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