Book Title: Parmatmaprakash
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 37
________________ जोइंदु-विरइउ 321 उदयहं आणिवि कम्म उव्वलि चोप्पडि उव्वस वसिया जो 10 220 219 74 244 131 248 अ. दो. १-१० २-८९ २-८८ १-७२ २-१११२३ एक्कु करे मण विणि एक्कु जि मेल्लिवि ए पंचिंदियकरहडा एयई दव्वई एयहि जुत्तउ एहु जो अप्पा एहु ववहारें 85 १-११४ १-८३ २-२०३ २-११६ 61 36 अ. दो. २-१८३ चउगइदुक्खहं 285 २-१४८ चट्टहिं पट्टहिं 298 २-१६० चेल्लाचेल्लीपुत्थियहिं छिज्जउ भिज्जउ 238 २-१०७ जइ इच्छसि भो 265 २-१३१ जइ जिय उत्तम 271 जइ णिविसद्ध 153 २-२६ जणणी जणणु वि 25 1-25 जम्मणमरणविवज्जिउ 312 २-१७४ १-६० जलसिंचणु पयणिद्दलणु जसु अब्भंतरि 80 १-७८ जसु परमत्थे जसु हरिणच्छी 50 १-४९ जहिं भावइ तर्हि 75 जहिं मइ तहि 49 १-४८ जं जह थक्कर 168 २-३९ जणियदव्वह 283२-१४६ जियबोड 243 २-१११*२ जं तत्तं गाणरूवं 164 P-२-३६२१ जं बोल्लइ ववहार55 १-५४ जं मई कि पि विजंपियउ 280 २-१४३ जं मुणि लहइ 148 जं सिवदंसणि 87 १-८५ जाणवि मण्णवि 51 १-५० जा णिसि सयलहं 221 २-९० जामु सुहासुहभावडा 334 जांवइ णाणिउ १-२४ जासु ण कोहु ण 337 २-१९९ जासु ण धारणु जासु ण वण्णु ण जिउ मिच्छत्तें 38 १-३८ जिण्णिं वत्थि जेम 179 २-४९ जित्थु ण इंदिय २-१४४ जिय अणुमित्तु वि 329 २-१९१ जीउ वि पुग्गलु 305 २-१६७ जीउ सचेयणु 341 250 41 46 123 200 114 156 115 206 352 कम्मई दिढघण कम्मणिबद्ध वि कम्मणिबद्ध वि कम्महं केरा भावडा कम्महिं जासु कम्मु पुरक्किउ सो करि सिवसंगम काऊण पग्गरूवं कायकिलेसें पर कारणविरहिउ कालु अणाइ अणाइ कालु मुणिज्जहि कालु लहेविणु कि वि भणंति केण वि अप्पउ केवलणाणि अणवरउ केवलदसणणाणमउ केवलदसणणाणमय केवलदसणु णाणु 141 १-१२१ २-७० १-११२ २-२९ १-११३ २-७५ २-२१३ २-१४ २-२१२ १-११७ १-११६ २-३० २-४६५१ २-१९४ २-४१ १-२० १-२२ १-१९ 351 119 118 157 176 332 170 20 २-२१ 24 गउ संसारि गयणि अणंति गंथहं उप्परि 19 81 317 28 254 149 281 घरवासउ मा जाणि घोरु करंतु वि घोरु ण चिण्णउ २-१७९ १-२८ २-१२० २-२२ २-१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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