________________
मुझे हर्ष है कि आज शांती लाल जी "खिलौने वाले” दिल्ली निवासी ने मेरे ग्रन्थ समान 'श्री परमात्मा का अभिषेक-एक विज्ञान' के प्रकाशन का लाभ लिया है ।
सुप्रसिद्ध उद्योगपति होते हुए भी आप सादा जीवन, उच्च विचार के प्रतीक हैं। सरलता, सादगी और संयम आपके जीवन की त्रिवेणी है। आप न केवल धर्म प्रेम से ही ओतप्रोत हैं बल्कि जन सेवा में भी आपकी असीम निष्ठा है सामुहिक यात्राओं के दौरान आपने अपने सामान को स्वयं उठाना, सभी सहधर्मी भाईयों की सुख सुविधा का ध्यान रखना एवं उनको भोजन कराने के बाद फिर
स्वंय भोजन करना ये सभी बातें आपके समाज सेवी होने का ज्वलन्त प्रमाण है। आपने अपने साधार्मिक व अन्य भाई बहनों की हमेशा प्राकृतिक तरीके से जीवन को कैसे स्वस्थ रखना चाहिए की प्रेरणा दी है तथा सभी के सुख दुख में शामिल हुए है। आपने अपने पिता जी के एक वचन “किसी भी संयम, प्रेमी, साधू-साधवी की गोचरी का लाभ लेना अत्यन्त लाभकारी है" को बांध लिया अपने जीवन में और जिस प्रकार आपने अपने जीवन में व्यावच किया वो अनुमोदनिये है । आपने किसी भी समुदाय में भेदभाव ना रख कर हर साधू साधवी के मां-बाप बनकर जो सेवा की है, वह सेवा जो उन साधू साधवियों के दिलों में बसी हुई है और स्मरण करने पर वे भूरी भूरी अनुमोदना करते हैं।
मेरी दिक्षा से पहले मेरा जो विहार जम्बु विजय महाराज जी के साथ में एक वर्ष तक रहा उस समय पर उत्तर भारत में विहार करते हुए जम्बु विजय महाराज जी के सामने स्वास्थ्य व परिवाहन व अनेक समस्याओं पर आप तुरन्त समक्ष हो जाते थे और जब आप उनकी सारी समस्याओं का निवारण कर देते थे तो उन्होंने आपको एक उपाधी दे दी "संकट मोचन शांतीलाल जी" ।
आप अपने जीवन में केवल धनोपार्जन को अधिमान न देकर जनसेवा धर्म परायणता और सहधर्मी – उत्थान को महत्वपूर्ण समझा है। आप में धार्मिक भावना कुट - कुट कर भरी है। आपका तन-मन-धन से वल्लभ स्मारक, कांगड़ा तीर्थ, श्री आत्मानन्द जैन हाई स्कूल अम्बाला, आत्मानन्द जैन सभा रूप नगर, आत्मानन्द जैन सभा रोहिणी को दिया गया योगदान को नहीं भुलाया जा सकता जो कि अनुमोदनीय है। वल्लभ स्मारक के प्रारम्भ के निर्माण के समय में जब आप किसी भी पद पर नहीं थे फिर भी आपने कर्मचारियों की एक्सीडेंट (Accident) होने पर उनकी चिकित्सा करने का जो योगदान दिया व निर्माण का कार्य रूक ना जाये इस पर तत्पर रहे थे और 12 वर्ष का बहूमुल्य समय आपने उस तीर्थ पर समर्पण किया जो सदाकाल याद रहेगा ।
सन् 1973 में आपके औद्योगिक संस्थान में आग लग गई थी सब कुछ जलकर राख हो गया था यहाँ तक कि जीवन यापन करने को भी आपके पास कुछ ना बचा उस समय परम विदुषी महतरा साध्वी श्री मृगावती जी महाराज के चरणों में आप उपस्थित हुए और उनके मुख से निकले शब्दों में "सुन्दरम अति सुन्दरम, एक परिवार नष्ट होने से बच गया है आपका भविष्य और भी उज्जवल होगा" महतरा साधवी जी के शब्द अक्षरशः सत्य सिद्व हुए। आपके जीवन का लक्ष्य जितनी मेहनत करो उतना फल पाओ ही आपके उद्योग को खिलौने के व्यापार में सारे देश में अब्बल नम्बर पर लेकर गया है। जिसमें आपने अपने ही देश के ही बनाये खिलौनों का व्यापार किया और कितने ही फैक्टरियों और लोगों को रोजगार दिलवाया जो कि आज भी आपको हृदय से स्मरण करते हैं।
मेरा विश्वास है कि आप जैसे धर्मानुरागी और महान व्यावचकर्ता भक्त का आशीर्वाद और मार्ग दर्शन दूसरे श्रावक और श्राविकाओं को वरदान सिद्ध होगा ।