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तीसरा अध्याय ।
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करके उस दुराग्रहीने थोड़ी ही देरमें तीन लोकको डरा देनेवाली रणभेरी बजवा दी । भेरीके शब्दको सुन कर सभी राज-गण युद्धके लिए उत्सुक हो उठे
और चलते हुए भटोंके हाथोंके चंचल शब्दोंके द्वारा अपनी निठुरता दिखलाने लगे । सब सेना तैयार होकर क्रमसे चलने लगी । सबसे आगे पर्वतके वरावर ऊँचे और सजे हुए हाथी चले जाते थे । हाथियोंके पीछे युद्ध-समुद्रकी तरंगोंकी नॉई चंचल और पलाण आदिसे सुशोभित घोड़े चलते थे । घोड़ोंके पीछे चीत्कार शब्द करते हुए रथ और उनके वाद पयादे-गण चलते थे। पयादोंके हाथोंमें भाँति भॉतिके हथियार थे। किसीके हाथमें दंड था, कोई धनुष और कोई भाला लिये था । एवं किसीके हाथमें तलवार थी। इस प्रकार सेनाके साथ अर्ककीर्ति विजयघोप नाम हाथी पर सवार होकर अकंपन महाराज पर जा चढ़ा । अकंपनने जब इस समाचारको सुना तब मंत्रियोंसे सलाह कर अर्ककीनिके पास एक दूत भेजा । दूतने जाकर अर्ककीर्तिसे कहा कि कुमार ! इस तरह मान-मर्यादाको लॉपना आपको शोभा नहीं देता। हे चक्रिपुत्र ! आप रंजको छोड़ कर प्रसन्न होइए, व्यर्थका झगड़ा मत छेड़िए । जहाँ तक बन सका दूतने बहुत कुछ नम्र निवेदन किया, पर जब अर्ककीर्ति पर उसका कुछ भी असर न हुआ तब वह लाचार हो वापिस लौट आया और उसने जैसाका तैसा सब हाल अकंपन महाराजको सुना दिया। वह सब सुन कर जयने कहा कि कोई फिकरकी बात नहीं, मैं उस परस्त्री-लंपटको सॉकलको पकड़ने के लिए तैयार हुए वन्दरकी भॉति एक मिनटमें ही बॉध लूंगा । इसके बाद जयने वह मेघधोषा नाम भेरी बजवाई, जिसको कि उन्होंने मेघकुमारको जीत कर प्राप्त किया था। तात्पर्य यह कि इधरसे जयकुमारने भी युद्धकी घोषणा कर दी। भेरीके शब्दको सुनते ही जयकुमारकी सेना भी चल पड़ी। लहराते हुए समुद्रकी भॉति मतवाले हाथी चलते हुए ऐसे जान पड़ते थे मानों मदसे घूमते हैं । एवं पृथ्वी को अपनी टापोंके द्वारा खोदते और हांसते हुए वायुके वेगकी भॉति चचल शीघ्रगामी घोड़े और सभी हथियारोंसे भरपूर रथ-समूह चलने लगे। रथोंके ऊपर धुजाएँ फहराती थीं, जिनसे ऐसा जान पड़ता था कि मानों वे और
और मनुष्योंको युद्धके लिए ही बुलाती हैं। इसी तरह पयादेगण भी आमोदप्रमोदके साथ युद्धस्थानमें पहुँचनेको उद्यत हो गये । इस समय वहॉकी स्त्रियाँ भी भटोंका काम करती थीं । वहाँका और क्या वर्णन किया जा सकता है । एवं अपनी सेनाको साथ लेकर स्वयं अकंप और वैरियोंको थर थर कॅपानेवाले अकंपन
पाण्डव-पुराण ६