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पन्द्रहवाँ अध्याय।
२३७ इसके बाद भोजन करनेकी इच्छासे वह पवित्रात्मा प्रवीण भीम हलवाई की दुकान पर पहुँचा । वहाँ उसने एक हलवाईसे कहा कि भाई, यह चमकती हुई सोनेकी मोहर लेकर हमें भोजन के लिए मिठाई दे दो। देर मत करो; क्योंकि हमारे भाई भूखसे दुःखी हो रहे हैं । हलवाई उस मोहरको लेकर खूब संतुष्ट हुआ। सो ठीक ही है कि सोनेको पाकर कौन सन्तुष्ट नहीं होता । इसके वाद हलवाईने भीमको भोजन करनेके लिए एक मजवत आसन पर बैठाया
और भक्ति-भाषसे उसके सामने भोजनका थाल परोस दिया । भीम बहुत ही भूग्वा था सो उसने धीरे धीरे कंठ तक-वहाँ जितनी सामिग्री मिली उसे खूब खाया; जरा भी कोई चीज उसने बाकी न छोड़ी। भीमने खा-पी कर संतुष्ट हो हलवाईसे कहा कि अब भाइयों के लिए भोजन दो । यह देख वह चकराया
और डरता डरता बोला कि अब आप ही कहिए कि मैं क्या हूँ कुछ बाकी तो बचा ही नहीं है । हॉ, कहें तो क्षणभरमें मैं तैयार करवाये देता हूँ। यह कह कर उसने भक्तिभावसे भीमके चरणों में नमस्कार कर उसे सन्तुष्ट किया । यह सुन भीम थोड़ी देरके लिए वहीं ठहर गया। इतनेहीमें कर्णफा एक महाकाय हाथी मदसे उन्मत्त होने के कारण निरंकुश हो सॉकल तोड़ कर निकल भागा । और जो जो बाजारके मनोहर मकान, वृक्ष वगैरह-उसके सामने आये उन्हें उसने उखाड़ कर फेंक दिये । धीरे धीरे उसके उत्पातकी खवर भीमके कानोंमें पड़ी
और वह उसके पास पहुँचा । लोग उसे देखते ही कहने लगे कि हम सब आपकी शरणमें हैं, हमें इससे बड़ा भय हो रहा है । देखिए इसीके कारण हम सब कॉप रहे हैं। अतः अब आप हमारी रक्षा कीजिए; हमे इस संकटसे वचाइए । महाराज, आप बड़े वली हैं, अतः आपको प्रजाकी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि आपको बड़े बडे वली भी मानते हैं और आपका नाम भी विपुलोदर है। ऐसे भयानक समयमें चलवानोंकी ही हिम्मत पड़ सकती है। उन लोगोंके ऐसे दीनता भरे वचनोंको सुन कर भीम उस मदोद्धत हाथीको जीतनेके लिए तैयार हुआ। उसने व्रजके जैसे अपने मुष्टि-प्रहार, पैरोंके प्रहार और भुजदण्डोंके प्रहारसे उसे क्षणभरमें निःसत्व कर उसके दाँतोंको उखाड़ कर मद-रहित कर दिया । यह देख एक मनुष्यने जाकर भीमकी यह सारी लीला कर्णको कही । उसने कहा कि देव, एक प्रचंड ब्राह्मणने आपके हाथीको एक क्षणमें ही वशमें कर लिया है। महाराज, घड़े अचम्भेकी बात है कि जिस हाथीको युद्धमें कोई भी नहीं जीत सकता था उसी हाथीको उस यलीने 'एक क्षणमे ही निर्मद कर दिया है । देव,