Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 391
________________ wrime m. airmwarmerammar पञ्चीसवाँ अध्याय । ३७९ स्वर्गमें गई और वहाँ जो पहले सोमभूति नाम देव था उसकी देवी हुई । वहाँ उसकी पचपन पल्पकी आयु हुई । उसने देवोंके साथ वहाँ मन-चाहे सुखोंको , भोगते हुए और मानस प्रवीचारका सेवन करते हुए बहुत समय बिताया। , , इसके बाद वे देव वहाँसे चये और हस्तिनापुर के राजा पाण्डकी कुन्ती और मद्री दोनों गलियोंके गर्भसे उत्तम पुत्र हुए । देखो जो पहले सोमदत्त था वह तो तुम निर्भय युधिष्ठिर हुए हो । सोमिल नाम तुम्हारा जो भाई था वह यह निर्भीक भी हुआ है। और शत्रुको जीतनेवाला यह अर्जुन सोमभूतिका जीव है। तुम लोग तीन जगतमें प्रसिद्ध हो और अपने ही बल द्वारा उन्नत हुए थे। इसी तरह जो धनश्रीका जीव या वह मद्रीका पुत्र महान् नकुल और मित्रश्रीका जीव तुम्हारा छोटा भाई सहदेव हुआ है। एवं जो पहले सुकुमारिका (दुर्गन्धा) थी वह कापिल्यपुरीके पति द्रुपद राजा और दृढ़ग्या रानीकी द्रौपदी नामकी पुत्री हुई । इसने पहले भवमें समिति, गुति, व्रत और उतम भावना आदि द्वारा जो पुण्य पैदा किया था उसके प्रभावसे तो यह उत्तम रूप और कान्तिवाली हुई और भोग-उपभोगकी इसे पूर्ण सामग्री प्राप्त हुई । और वसन्तसेना नामकी वेश्याको देख कर जो निदान किया था यह उसका प्रभाव है जो सारे संसार इसकी यह अपकीर्ति उड़ी कि द्रोपदीके पाँच पति है-वह पंचभारी है । पात यह है कि जीव मन, वचन और काय द्वारा जिस तरहके कर्म करता है उसे वैसा ही उनका फल भी भोगना पड़ता है। जैसे कि खेतमें जैसा वीज, बोया जाता है वैमा ही फल होता है। ऐसा जान कर जो सुकृती पुरुष हैं उन्हें चाहिए कि वे पापसे दूर रहें और धर्मका सेवन करें, जिसके प्रभावसे संसारमें सव सुख मात होता है। पहले भवमें युधिष्ठिग्ने जो उज्ज्वल चारित्र धारण किया था यह उसीका फल है जो इस भवमें उनकी सत्य-जन्य कीर्ति हुई। एवं भीमने पहले भवमें जों वैयावृत्य किया था उसका यह फल है कि यह वैरियों द्वारा दुर्जय अत्यन्त बली हुआ। पार्थने जो पवित्र चारित्रको धारण किया था उसका यह फल ' मिला कि यह धनुष-कलाका अच्छा ज्ञाता' धनुर्धर हुआ । नागश्रीके ऊपर इसका तव अति स्नेह था । यही कारण है कि द्रोपदी पर इसका अब भी बहुत 'मेह है। क्योंकि प्राणियोंका अत्यन्त स्नेह पूर्व भवके, निमित्तमे ही होता है । इसी प्रकार धनश्री और मित्रश्री नामकी दा ब्राह्मण स्त्रियोंने जो कोको नाश करनेके लिए सम्यक्त्व-सहित उज्ज्वल तप रूपी विचित्र चारित्र धारण किया था 'यह उसीका प्रभाव है जो वे दोनों यहाँ आपके अति प्यारे और प्रसिद्ध

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