Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 402
________________ । पाण्डव-पुराण! mun nannnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww ____ मैं ऐसे साधुओंकी हृदयसे चाह करता हूँ जो उत्तम शाखके क्षण हरनेवाले और परतोष देनेवाले हैं। मुझे उन असाधुओंकी जरूरत नहीं जो प्रयत्न द्वारा रचे गये शास्त्रमें भी दोष बताते हैं और परको दूषण देते हैं । भूतल पर जो परकार्य करनेमें अनुरक्त साधु-पुरुष हैं उनका स्वभाव ही ऐसा होता है कि वे दोष देख कर भी किसी पर विकार भाव नहीं दिखाते; किन्तु चंद्रमाकी भॉति ही निज करों (किरणों और हाथों) द्वारा नक्षत्र-वंश-विभव होते हुए भी औरोंको परितोष देते है । और जो तामप्त स्वभावसे पूर्ण हैं वे निरन्तर उत्तम मार्गको विगाड़नेमें ही दत्तचित्त रहते हैं, कुमार्ग पर चल कर अपने आपको भी कीचड़में लयोड़ते हैं और लोकमें अज्ञानांधकारका प्रसार करते हैं । देखिए संसारमें अच्छे पुरे जो जो पुरुष हुए यदि जगह जगह उनके अच्छे और बुरे कृत्य न भरे-पड़े होते तो फिर लोगों को अच्छे बुरेकी पहिचान ही कैसे होती; जैसे काचके अभाव में रत्नकी पहिचान नहीं हो सकती। मैं उन साधुओंकी क्या प्रार्थना करूँ जो पर गुणोंको ही सदा कहते और सुनते है; पराये दोर्षोंको कभी न.कहते और सुनते । और न भूलें हो जाने पर वे हितकारी दंड ही देते हैं । वे तोष-भावके निधान साधु संसारकी शोभा बढ़ावें। मै उन दुष्टोंकी प्रशंसा करता हूँ जो पराये दोष कहने के लिए सदा ही टकटकी वॉधे रहते है और जहाँ दोषका लेश मात्र भी पाया कि उसे सारे संसारमें गाते फिरते हैं और कहते हैं। कि".अमुककी कृति सारी ही इसी तरह तरह दोषोंसे भारी हुई है। . . ___ पाण्डवोंके इस पवित्र ही नहीं, किन्तु परम पवित्र पुराणको बना कर मैं न तो राज-सुख चाहता हूँ और न और ही कोई वस्तु चाहता हूँ किन्तु मुक्ति-पदकी याचना करता हूँ। भक्ति से सब मनचाहा फल होता ही है। यदि इस पुराणमें कहीं व्याकरण, युति, छंद, अलंकार, काव्य आदिक्के विरुद्ध वात कही गई हो तो उसे बुद्धिमान् जन शुद्ध कर लें, क्योंकि शुद्ध भावोंके धारक बुधजन जो कुछ भी प्रयास करते है वह परोपकारके लिए ही करते हैं । मैंने न छंदशास्त्र देखा है और न अलंकार तथा गणोंको सीखा है; न मैं कान्य आदि जानता हूँ और न मुझे जैनेन्द्र आदि किसी व्याकरणका ही मान है। इसी प्रकार त्रैलोकसार आदि लोक-ग्रन्थ और गोम्मटसार आदि

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