Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 375
________________ mawwwwwwwwwwwamil NAAMAN तेवीसवाँ अध्याय ३६३ धूपघट, धुजाएँ और तालाव आदि उसकी अपूर्व शोभा बढ़ा रहे थे। सभाके ठीक वीचमें आठ प्रातिहार्यों और महान् चाँतीस अतिशयों द्वारा अलंकृत भगवान मुशोभित थे। समवसरणमें बारह समाएँ थी, जिनके सभ्य क्रमसे इस प्रकार थे-निम्रन्थ मुनि-गण, कल्पवासी देवोंकी स्त्रियाँ, अर्जिकाएँ, ज्योतिषी देवोंकी स्त्रियाँ, व्यन्तर देवोंकी स्त्रियाँ, भवनवासी देवोंकी स्त्रियाँ, भवनवासी देव, व्यन्तरदेव, ज्योतिषी देवे, कल्पवासी देव, मनुष्य, गौ आदि पशु । इन बारह प्रकारके सभ्यों द्वारा शोभित चतुरानन (चतुर्मुख) प्रभुने वरदत्त गणधरके लिए उत्तम धर्मका उपदेश किया । भगवान बोले कि जीव, अजीर, आसव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये जिनमतके सात तत्व-पदार्थ-हैं। इसके वाद प्रभुने छह द्रव्य और पॉच अस्तिकायोंका उल्लेख कर उनके समुदाय रूप लोकका कथन किया और उसकी उर्द्ध, अधः, मध्य-रूपसे तीन तरहकी स्थिति वताई। उन्होंने लोकका हाल बताते हुए कायका उत्सेध, सात नरकोंके संस्थान, स्वर्गलोककी कल्पना तथा द्वीप-सागरोंके भेद कहे । इसके बाद भगवानने चार गति, पाँच इन्द्रिय, छह काय, पन्द्रह योग, तीन वेद, पच्चीस कषाय, आठ मद, सात संयम, चार दर्शन, छह लेश्या, भव्य-अभव्य, छह सम्यक्त्व, संज्ञा और आहारके भेद, यों चौदह मार्गणाओंका कथन किया; और चौदह गुणस्थान, चौदह जीवसमास, छह पर्याप्तियाँ, दस प्राण, चार संज्ञाएँ और वारह उपयोग-इनका दिग्दर्शन कराया। ___एवं प्रभुने जीव-जातियों, कुलों, यतिधर्म और श्रावक धर्मके अध्ययनका भी क्रम वताया । गरज यह कि भगवानने क्रमसे सभी पदार्थ समझाये ।' भगवानके द्वारा इस तरह शुभ धर्मको सुन कर कितनेहीने ग्यारह प्रतिमारूप श्रावक धर्मको ग्रहण किया और कितनोंने महाव्रत-पूर्वक संयमका आश्रय लिया । इस तरह धर्मष्टि कर भव्योंको संवोध देते हुए नेमिनाथ प्रभुने देश-विदेशमें विहार किया। इसके बाद तेजस्वी और आर्जव धर्मधारी भगवान सब देशोंमें विहार कर ऊर्जयंत पहाड़ पर आये । प्रभुको वहाँ आया जान कर उद्यमी यादव-गण वलदेवको आगे कर उनकी वन्दनाके लिए हर्षके साथ आये । वे भव्य भगवानकी स्तुति कर, उनको नमस्कार कर अपने योग्य स्थानमें बैठ गये और एक-चित्त होकर उन्होंने धर्म-श्रवण किया। इसके बाद जिन भगवानको नमस्कार कर कृष्णके साथ-साथ बलदेवने प्रभुसे पूछा कि भगवन् , कृष्णका यह विशाल राज्यका ऐश्वर्य कब तक रहेगा

Loading...

Page Navigation
1 ... 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405