Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 379
________________ चौबीसवाँ अध्याय । कि कामके रॅगसे रेंगे हुए कामी पुरुष सुंदरी कामिनियों के साथ चिरकाल. तक रमा करते हैं, न जाने उन्हें सुख क्या होता है । भला जिनके शरीरोंमें करोड़ों रोगोंका निवास हैं और जो साँपके विल जैसे है उनमें उन्हें क्या सुख हो सकता है । यह दूसरी बात है कि वे मोहान्ध हुए उनके साथ रमनेमें सुखकी कल्पना करें-सुख मानें । पर वास्तवमें सुखका लेश भी स्त्रियोंके साथ रमनेमें प्रतीत नहीं होता। इसी प्रकार ये भोग भी क्षण भुंगुर हैं। ये पुरुषोंको केवल भोगनेके समय ही सुखदायी प्रतीत होते है । अन्तमें इनमें कुछ भी स्वाद नहीं प्रतीत होता-नीरस जान पड़ते हैं । फिर कहा नहीं जाता कि उनमें मनुष्य सुख मानते हैं तो कैसे मानते है । समझ नहीं पड़ता कि जब विषय-रूपी आभिष माणहारी विष-तुल्य हैं तब क्षयके उन्मुख हुए मनुष्य उसके साथ क्यों प्रीति करते हैं ? मनुष्योंकी यह वडी भारी मूर्खता है जो विषयोंके द्वारा ठगे गये जीव दुःखदायी दुर्गतिको जाते हैं, यह जानते झते हुए भी वे फिर विषयोंका सेवन करते हैं और दुर्गतिको जाते है । वात यह है कि संसारमें जितने भी पदार्थ हैं वे सब क्षण-स्थायी हैं । यदि चित्तको स्थिर करके देखा जाय तो इन्द्रियाँ, शरीर, धन-दौलत, राज-पाट, मित्र- बान्धव कहीं भी कोई स्थिर नजर नहीं आता । ये भोग भोगी ( सॉप) के जैसे चंचल और भव्य प्राणियोंको भय देनेवाले हैं । सेवन करनेसे इनकी लालसा अधिकाधिक बढ़ती है। जैसे कि आगके निमित्तसे खुजली । भोगोंके द्वारा भजे गये विषय और और अधिक बढ़ते हैं, कभी भी उनकी शान्ति नहीं होती; जैसे काठके मिलते हुए आग शान्त नहीं होती । यही कारण है जो बड़े बड़े दुःखोंके द्वारा पचता हुआ यह जीव खब लम्बे-चौड़े पंच परावर्तन-रूप संसारमें चक्कर काटा करता है । और अनादि वासनासे जाग्रत हुई मिथ्यात्व-बुद्धिके मोहके. मारे, हित-अहितकी पहिचान न होनेसे धर्मकी तरफ इसकी रुचि ही नहीं होती-उसे यह अपनाता ही नहीं किन्तु उसकी तरफसे बहुत उदास रहता है-उसे घृणाकी दृष्टिसे देखता है। फल यह होता है बारह प्रकारकी अविरतिमें रत-चित्त होकर यह विषय रूपी आमिषका भक्षण करता है और संसारकी घोर विपदामें जा पड़ता है। बुद्धिशाली जीवोंके सद्गुणोंको जो क-विगा.---बुद्धिमान लोगोंने उन्हें कपाय कहा है । कषाय मोक्ष सुखकी प्राप्तिमें अटकाव डालती है, अत जिन्हें मोक्ष सुखकी लालसा है उन्हें चाहिए कि वे कपायोंको छोड़ें । जिनके द्वारा जीवोंका कर्मोंके साथ योग होता है बुद्धिमानोंने उन्हें योग कहा है। वे स्थूलपने शुभ तथा अशुभ इस प्रकार दो भेद रूप हैं परन्तु पारीकीके साथ देखा जाय तो वे श्रेणीके

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