Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 388
________________ ३७६ पाण्डव-पुराण | vhn An M AAA 1 An A wwxn www venna woman war wars namww. इसी पुरीमें एक दूसरा और भी वैश्य था । जिसका नाम धनदेव या और जो बिलकुल ही दरिद्र था । उसकी स्त्रीका नाम अशोकदत्ता था । इसके गर्भ से दो पुत्र हुए। एक जिनदेव और दूसरा जिनदत्त । ये दोनों विद्याभ्यास करते हुए थोड़े दिनों में यौवन दशाको प्राप्त हुए। एक दिनका जिक्र है कि सुवन्धुने आकर घनदेवसे बहुत मान पूर्वक प्रार्थना की कि आप धर्मात्मा जिनदेव के साथ दुर्गन्धाके विवाहकी स्वीकारता दीजिए । राज- मान्य सुबन्धुकी बात सुन कर धनदेव चुप रहा और उसने सोचा कि यदि ऐसा ही भवितव्य है तो उसे कौन रोक सकता है । इसके बाद सुबन्धुने जब दुवारा प्रार्थना की तब धनदेवने तथेति कह कर उसे अपनी स्वीकारता दे दी । सच है कि धनकी चतुराईके आगे मनुष्यकी चतुराई जरा भी काम नहीं देती । यह बात जव जिनदेवने सुनी तब वह बड़ा संकटमें पड़ा । वह मन-ही-मन सोचने लगा कि यदि मेरी ऐसी जाया हुई तो यह खोटे कर्मका फल ही समझना चाहिए | यदि सचमुच ही मेरे साथ दुर्गंधाका विवाह हो गया तो मेरा यौवन विफल ही हुआ । जैसे बकरीके गलेके स्तन निस्सार होते हैं वैसे ही मेरा यौवन भी निस्सार है । बड़ी भारी संकटकी यह बात है कि दुर्गंधाका पिता एक बड़ा भारी श्रीमान् और राजमान्य मंत्रवित पुरुष है, इस कारण मेरे पिता उसके वचनको किसी तरह भी नहीं टाल सकते । यदि दुर्गन्धा जैसी दुष्टा, अभागिनी, दुःखिनी और दीन-चित्त स्त्री मेरी जाया हुई तब तो में फिर भोगोंको भोग ही चुका । ऐसे बुरे सम्बन्धसे तो मनुष्यके लिए मर जाना ही अच्छा है । जिस तरह रोंगके सम्बन्धसे जीवोंको दुःख होता है उसी तरह बुरे सम्बंध से भी पीड़ा पहुँचती है । इस समय न तो उसकी आँखोंमें नींद थी और न उसे खाने पीनेकी ही सुध थी । सिर्फ वह इसी एक चिन्तामें लीन था । इसके बाद वह अपने छुटकारेका कोई उपाय न देख माता-पितांसे बिना कहे ही घर से निकल चनको चला गया । वहाँ वह समाधिगुप्त नामक मुनिको नमस्कार कर उनके आगे बैठ गया । मुनिसे उसने धर्मोपदेश सुननेकी जिज्ञासा प्रकट की । उत्तरमें योगी बोले कि जिनदेव, जरा सावधान चित्त होकर सुनो, मैं तुम्हारे लिए धर्मका स्वरूप कहता हूँ । सम्यक्त्व - सहित ज्ञान चारित्रको धारण करना ही धर्म है और मोक्षके अर्थी पुरुषोंको उचित है कि वे इसे धारण करें । छह काय के जीमोंकी रक्षा करना, सच बोलना, परधन और पराई स्त्रीका त्याग करना भी

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