Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 382
________________ किंचन्या ब्रह्मचर्य है । अचलान हनिको धर्मबहारनयकी हा ३७० पाण्डव-पुराण । wwmummmmmmmmmmmmmmm num, an wwwwwwwwmmammommmmmmmm आकिंचन्य और आत्मामें लीन होनेका नाम ब्रह्मचर्य है । अथवा सव स्त्री मात्रका त्याग करना ब्रह्मचर्य है । अथवा मोहसे उत्पन्न हुए विकल्प-जालोंके विना निर्मलताके साथ आत्म-स्वरूपमें लवलीन होनेको धर्म कहते कहते हैं । गरज यह कि जो ऊपर धर्मके भेद-प्रभेद बताये गये हैं वे व्यवहारनयकी दृष्टिसे कहे गये हैं। नीचे जो आत्म-स्वरूपमें लीन होना धर्म बताया गया है वह निश्चयनयकी दृष्टिसे कहा गया है । और वास्तवमें चिद्रूप, केवलज्ञान स्वरूप, शान्त, शुद्ध और सर्वार्थवेदक तथा उपयोग-मय आत्मा ही सच्चा धर्म है । और यही कारण है जो मनवचन द्वारा मैं चैतन्य-स्वरूप और उपयोग-मय हूँ, इस तरहके दृढ़ विचारको धर्म कहा गया है । धर्म शब्दका अर्थ है कि जो संसार-सागरसे निकाल कर जीवोंको मुक्तिमें पहुँचा दे । और ज्ञान द्वारा आत्माकी जो विशुद्धि होती है वही सच्चा धर्म है । और वही एक ऐसा कारण है जो कि जीवोंको संसारके वधनसे छुड़ा सकता है । तात्पर्य यह है कि आत्माकी बिल्कुल ही शुद्ध अवस्थाको धर्म कहते हैं और सिवा इसके जो भेद-प्रभेद रूप धर्म है वह इसी निश्चयका साधन है । गरज यह कि व्यवहार धर्म द्वारा ही निश्चय धर्म प्राप्त होता है। इस तरह धर्मका पूर्ण स्वरूप सुन कर कुन्ती-पुत्र पांडवोंने सीधे-साधे वचनों द्वारा आत्म-शुद्धिके अभिप्रायको लेकर प्रभुसे अपने भवान्तरोंको पूछा । वे बोले कि भगवन् , हमने कौनसा ऐसा पुण्य किया कि जिसके प्रभावसे हम लोग परस्पर स्नेहके भरे महावली और निर्मल चित्त हुए । और पांचालीने वह कौनसा पुण्य पैदा किया था जिससे कि वह ऐसी अद्भुत सुन्दरी हुई और फिर उससे ऐसा कौनसा पाप बन गया कि जिससे उसे पॉच पुरुषोंका दोष लगा अर्थात् वह पंचभर्तारी कही गई । उत्तरमें भव्य पुरुषोंके उद्धारके लिए तत्पर भगवान् बोले कि जम्बूवृक्ष द्वारा शोभित जम्बूदीपमें भरत नाम क्षेत्र है । उसमें सब प्रकारसे सुशोभित अंग देश है, जो कि ऐसा जाना जाता है जैसे कि शुभ लक्षण-पूर्ण अंगोंवाला महान् अंगी ही हो। इस देशमें कहीं भी शत्रुका नामनिशान नहीं था। यही कारण है जो कि इसकी ख्याति सारी पृथ्वी पर थी। इसमें एक चंपा नामकी नगरी है जो कि प्राकार, परिखा द्वारा बेढ़ी हुई होनेसे भूतल पर बहुत अधिक शोभाशाली है। वह बहुत अधिक पवित्र है, अतः ऐसी जानी जाती है जैसे पवित्र मनुष्योंको वह और भी पवित्र बनाती हो । उसके राजाका नाम मेघवाहन था। वह कौरववंशी था । मेघवाहनके समय इस नगरीमें एक बड़ा भारी गुणी प्रामण रहता था, जिसका नाम था सोमदेव । सोमदेवकी स्त्रीका

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