________________
पाण्डव-पुराण ।
खून जलकी जगह था । यह देख भीम उसे नष्ट करनेके लिए रथ-रूपी नौका पर सवार होकर उसमें घुस पड़ा और उसे छिन्न-भिन्न करने लगा । एवं एक और मतवाले हुए कर्ण और अर्जुन युद्ध करने लगे और थोड़ी ही देरमें अर्जुनने अपने बाणोंके तीव्र प्रहारसे कर्णका धनुष छेद डाला । उधरसे कर्णने भी छेदनेमें कुशल अपने शरोंसे पार्थका छत्र छेद दिया। तब वे परस्परमें एक दूसरेके घोड़ोको छेदने लगे । इसी समय कर्णने लाख-वाण छोड़ कर पार्थका दूसरा धनुष भी छेद दिया । तब पार्थने तीसरा धनुष लिया और वह कर्णसे वोला कि कर्ण, तुम कुन्तीके पुत्र और मेरे भाई हो, यह बात सारा संसार जानता है। इस लिए अब तुम भाई-भाईके युद्धमें धीरजके साथ मेरे घनके जैसे आघातोंको सहो । देखो कहीं पीठ दिखा कर भाग न जाना। मैंने पहले रणमें तुम्हें पकड़ कर कई “बार छोड़ दिया; परन्तु अब मैं छोड़नेका नहीं । तुम या तो अति शीघ्र युद्धके लिए तैयार हो अथवा रण-स्थल छोड़ कर अपने घरका रास्ता लो; यहाँ एक क्षण भी न ठहरो । इसीमें तुम्हारी भलाई है। ।
यह सुन वीर कर्णने कहा कि रे जड़ात्मा और अविनयी पार्थ, तू व्यर्थ ही वकता है । देख मैं तुझे अभी धराशायी किये देता हूँ। और यह तो तू भी जानता है कि तेरे आगे ही पहले मैंने अनेकानेक गजोंको घराशायी किया है । इस लिए अब तू व्यर्थ ही अपने मुँह अपनी बड़ाई न कर और न व्यर्थ ही खोटे वचन बोला किन्तु मेरे प्रहारोंको सह । इसी धीचमें कृष्णने आकर कर्णसे कहा, तुम्हारा पुत्र विश्वसेन धराशायी हो कालका अतिथि बन चुका है। यह सुन कर कर्ण शोकके मारे विह्वलसा होकर बड़ी विषम चिन्तामें पड़ गया । वह सोचने लगा कि हाय ! यह कैसा अनर्थ है जो एक तुच्छ राज्यके लिए भाई भाईको भी मार डालते हैं । इस प्रकार कर्णको शोकाकुल देख उससे दुर्योधनने कहा कि वीरवर, यह शोकका अवसर नहीं है । इस लिए तुम शोकको छोड़ दो और अर्जुनका वध करो । इसीसे कौरवोंके हाथमें जय-लक्ष्मी आयेगी। सुन कर कर्ण उठ खड़ा हुआ और अर्जुनके साथ युद्ध करने लगा। इस वक्त उन दोनोंने ऐसी अविरल वाणोंकी बरसा की कि जिससे सारा गगन-मण्डल छा गया । इसी समय कृष्णने पार्थसे कहा कि पार्थ, शीघ्रनासे बाण चलाओ और शत्रुओंको मार गिराओ । कृष्णकी उत्तेजनामे अर्जुनको बड़ा जोश आया और तब वह अति शीघ्रतासे वाण छोड़ने लगा। फल यह हुआ कि उसने थोड़े ही समयमें कर्णके धनुष-बाणको छेद दिया । तब उधरसे कर्णने