Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 362
________________ ३५० भी सन्तोष होनेका नहीं । यह अपने स्वामी आदि प्रिय पांडवोंका समागम पाकर ही इतनी निरंकुश हो रही है। इसे दूसरे द्वारा हरवा देकर प्रिय-वियोगमें डाल तभी यह दुःखिनी होगी । मैं इसे मार कर भी अपना बदला ले सकता हूँ; परंतु यह घोर पाप है । इस लिए ऐसा करना मुझे उचित नहीं है । अतः यही ठीक है कि किसी लंपटी पुरुषको खोज कर इसे उसके द्वारा हरवा ही दूँ । पाण्डव पुराण | AWA www ~M~~~~www. नारायण, वलभद्र तथा और और सब राजे महाराजे तो मेरी वन्दना करें, मैं सबका गुरु और विशेष कर स्त्री जातिका गुरु, उस मेरे साथ इसकी यह कष्टदायी घृष्टता तथा दुष्टता जो गर्वके आवेशमें इसने मुझे कुछ भी न गिना और आप मजेके साथ आसन पर बैठी रही । बात तो यह है कि मैं भी अब कोई ऐसा ही प्रयत्न करूँ कि जिसके द्वारा जो शृंगार रस इसे इतना प्रिय है वह सब इसका छूट जाय । यह निश्चय है कि जब मैं इसके सौभाग्यको दूर कर दूँगामेरे मनोरथ भी तभी पूर्ण होंगे। मुझे जो अपमानका दुःख है वह मेरे हृदयसे तभी निकलेगा जब कि मैं आकाशमें होकर इसके हरे जानेको, आँखों देखूँगा । मन-ही-मन यह सब सोच कर कोपके भरे और उपायकी ताकमें लगे नारद ऋषि किसी परस्त्री-रत राजाको देखते हुए आकाश मार्ग होकर चले । खिन्नचित्त हुए नारदने बहुत जल्दी सारी ही पृथिवी घूम डाली । उन्हें कोई परस्त्री- रत राजा न देख पढ़ा । वह बड़े दुःखी हुए। सब जगह घूम फिर आये और जब जम्बूदीप भरमें भी उन्हें कोई ऐसा राजा नजर न आया तब वह परस्त्रीगामी राजाकी खोज में धातकीखंड दीपमें गये । und यह दीप विविध खंडों द्वारा समुन्नत है । चार लाख योजनका इसका विस्तार है । इसकी पूर्व दिशामें एक मंदर नाम पहाड़ है जो बहुत. अधिक मनोहर है, चौरासी हजार योजन ऊँचा है और जिस पर चार विशाल वन हैं। उन वनोंसे उसकी और भी अधिक शोभा है। इसकी दाहिनी बाजूमें जगत् विख्यात, अत्यन्त शोभा सम्पन्न और छह खंडों द्वारा मंडित भरत नाम क्षेत्र है । इस क्षेत्र के बीचों बीच अमरकंका नामकी एक पूरी है जो कि भूमंडलकी शोभा है, सुहावनी है, संसार भरमें उत्तम हैं, सार है और सुखकी खान है । इसका रक्षक है पद्मनाभ नामक महीपति। यह राजा इस नगरीकी बड़ी मीति के साथ पालना करता है; जिस तरह कि उन्नत पद्मनाभ - कृष्ण - सदा काल ही लक्ष्मीके मन्दिर ( महल ) की रक्षा - पालना करता है; उसे आश्रय दिये ',

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