Book Title: Pandav Purana athwa Jain Mahabharat
Author(s): Ghanshyamdas Nyayatirth
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti
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वावीसवाँ अध्याय ।
३५३
AAAAAAAAAAAAAAAMANANA
na MAANAAN
कुछ भी भान न था-वह वहाँ शय्या पर पड़ी हुई प्रातकाल तक बराबर
सोती ही रही । इसके बाद ही उसके हर ले आनेकी वातकी सूचना देवने पद्म, नाभको दी । वह सहसा जाग कर और अपनेको संभाल कर बड़ी सावधानीके साथ आदरका भरा द्रोपदीके पास आया । वह उस सोने जैसी उज्ज्वल, स्थूल और कठिन कुचोंवाली और सुन्दर जॉघों द्वारा सुशोभित चन्द्रवदनी द्रोपदीकी नींदसे भरी हुई छविको देख कर बड़ा खुश हुआ। वह प्रेमके आवेशमें आकर वोला कि भद्रे, रात्रि चली गई और सवेरा हो गया। अत: भामिनि, अब नींदको छोड़ो और उगे । सुलोचने, कला-कौशलमें पारको प्राप्त हुई देवि, अपनी सुंदर वाणी वोलो । पद्मनाभने इस प्रकार अमृत-तुल्य सुमधुर वाक्यों द्वारा जब उसे जगाया तव आँखें खोलते ही वह भयभीत मृगीकी भॉति व्याकुल नेत्रों द्वारा सव दिशाओंमें देखने लगी । वह बड़ी चिन्तामें पड़ गई कि यह देश कौन है, यह मुझसे कौन बातचीत कर रहा है, यह जो सामने खड़ा है कौन है, यह उद्यान किसका है और यह महल किसका है । जान पड़ता है यह सव स्वम है, साक्षात्में ऐसा दृश्य कहॉसे आ सकता है । यह सोच कर, वह आँखें मींच और मुंह ढंक कर फिर सो रही। उसकी यह हालत देख कामपीड़ित राजा उसके मनकी बात जान कर बोला कि कमलनयनी देवि, देखिए यह स्वम नहीं है । प्रहर्षिणि, जिसे कि तुम स्वम समझ रही हो वह सव सच्चा दृश्य है । उसके वचन सुन कर द्रोपदीको जान पड़ा कि वह स्वम नहीं देख रही है। उसने चारों दिशाओंमें दृष्टि डाली तो उसे छोटी छोटी घंटियोंसे युक्त एक सुंदर शोभमान विमान दिखाई दिया।
इसके बाद परस्त्री-लंपट, लोभी, कपटी, और पटु पद्मनाभ द्रोपदीसे वोला कि भामिनि, जिस देशमें इस समय तुम हो वह घातकीखंड नाम दीप है । इसका चार लाख योजनका विस्तार है और यह सब तरफसे कालोदधि समुद्र द्वारा घिरा हुआ. है। और यह सोनेकी कान्ति युक्त गृहों द्वारा सुदीप्त, मणि-मुक्ताफलों द्वारा भरीपुरी प्रसिद्ध अमरकंका नाम नगरी है । इसका स्वामी मैं पद्मनाभ राजा हूँ, जिसने
कि अपने पराक्रमसे सब दिशाओंको वश कर लिया है और शत्रुओंको जड़से : उखाड कर फेंक दिया है तथा जो इन्द्रके तुल्य है । भामिनि, तुम्हारे लिए मैंने
बड़ा कष्ट उठा कर हठ-पूर्वक एक देवताको साधा और उसीके द्वारा तुम्हें चुला मॅगाया । तुम्हारे बिना मुझे खाना-पीना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। देखो तुम्हारे विरहमें मै मरेके जैसा हो गया हूँ। उस देवताने बड़ी कृपा की जो कि वह तुम्हें ले आया । भीरु, अब तुम भय मत करो; किन्तु प्रसन्न होकर मेरे साथ
माण्डव-पुराण ४५

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