________________
३४६
पाण्डव-पुराण |
पांडवोंकी इस प्रकार विशाल सेनाका हाल सुन जरासंघको बड़ा क्रोध आया । इसके साथ ही वह कृष्णके साथ भिड़ गया । वे धनुपके टंकारसे दिशाओंको शब्द-मय करते, धनुषकी डोरियों पर वाणोंको चढ़ाते ऐसे शोभते थे मानों दो पराक्रमी सिंह ही आपसमें भिड़ रहे हैं । इसी समय कृष्णने एक अनि बाण छोड़ा । उससे जरासंघकी सारी सेनामें आगे लग उठी । चक्रीने जल- बाण छोड़ कर कृष्णके अग्निवाणको वारण किया और सेना शान्ति की । इसके बाद जरासंधने नागपाश चलाया, जिसे कृष्णने गरुड़ वाणसे वारण किया। तब जरासंधने बहुरूपिणी, स्तंभिनी, चक्रिणी, शूला आदि बहुतशी विद्याओंको भेज कर कृष्णकी सारी सेनाको अचेत कर दिया । कृष्णने उन सबको भी महामंत्रके वलसे भगा दिया । यह देख जरासंघकी बहुरूपिणी विद्या भी चली गई। इससे जरासंध बढ़ा खेद खिन्न हुआ उसके विषादका कुछ पार न रहा ।
www^^^^^^^^^^^^^w
इसके बाद जरासंधने चक्ररश्नको याद किया । वह उसी समय उसके हाथोंमें आ गया। उसकी सूरज जैसी प्रभा थी । उसकी किरणें चारों ओर फैल रही थी । पहिले जरासंधने उसकी पूजा की और बाद उसे कृष्ण पर चलाया । वह अपनी किरणोंसे यादवोंकी सारी सेनाको त्रसित करता हुआ सेनाके भीतर घुसा; जैसे अपनी किरणोंसे सुशोभित सुरज आकाशमें प्रवेश करता है । इस समय उसके तेजके मारे वहाँ कोई भी नहीं ठहर सका - सब भाग खड़े हुए । केवल शत्रुओंको भय उत्पन्न करनेवाले निर्भय कृष्ण, बलदेव तथा पांडव ही रहे । जरासंधका चलाया हुआ चक्र कृष्णके पास आकर और कृष्णकी तीन प्रदक्षिणा देकर उसके दाहिने हाथमें आ गया। उसे कृष्णके हाथोंमे आते ही यादवोंकी सेनामें जयध्वनि हुई ।
इस वक्त कृष्णने मधुर मीठे वचनोंमें जरासंघसे कहा कि जरासंध, अब भी समय है, मेरे चरणोंमें मस्तक नमा कर राज्यभोग करो । देखो, अभी कुछ बिगड़ा नहीं है, चेतो, इसीमें तुम्हारी भलाई है । मेरी आज्ञा शिरोधार्य कर तुम पहिलेकी नाँई ही सुखसे राज्य भोगो । कुष्णकी यह मर्मवाणी सुन कर जरासंधको बहुत क्रोध आया और वह विषाद करता हुआ बोला कि ओह, भूल गया कि तू एक ग्वाल है और मैं राजा हूँ ! मैं तुझे नमस्कार करूँ ? यह कभी नहीं हो सकता । तू चक्रका कुछ गर्व न कर । चक्र तो
"
土