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पाण्डव पुराण।
अपने पूर्वभवोंको सुन कनकनी विरक्त हो गई और उसने अर्जिकाके व्रत ग्रहण कर लिये । इसके बाद वे दोनों कनकनीकी प्रशंसा और भगवानकी वन्दना कर समवसरणसे वाहिर आये और प्रभाकरी पुरीको रवाना हुए । अपराजित और अनंतवीर्यकी देवता-गण आ-आ कर सेवा करते थे। उनके चरणोंमें नमते थे । वे हमेशा आमोद-प्रमोदसे रहते थे; कभी खेदखिन्न नहीं होते थे। उनका कोई भी वैरी नहीं रहा था । वे सर्वथा निंदा आदि अपवादोंसे रहित थे; उनका कोई निंदक न था । एवं वे विषाद-रहित और धर्मके फलको प्राप्त कर चुके थे तथा पुण्यका पटह पीटते थे कि देखो पुण्यका ऐसा फल मिलता है।
जिसने बड़े बलवान सेनावाले अजय्य शत्रुओं पर भी क्षणभरमें विजय-लाभ कर अपना अपराजित नाम सार्थक कर दिखाया वह अपराजित बलदेव जयवन्त हो । और जिसने अपने वीर्यसे दमतारि मतिनारायणके वीर्यको नष्ट कर दिया और जो शूरवीरों में श्रेष्ठ है, सभी शक्तिओंको दिखानेवाले और धर्म-मय वह अनवार्य प्रतिनारायण सर्वज्ञके प्रभावसे सुशोभित हो।