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चौथा अध्याय।
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सखिक नर्तकी पातली कलाये । उसे लेकर का मजाक
अपनी कनकश्रीको ले गा । दैवयोगसे बहकमय
दोनोंने दूतको तो वाहिर भेज दिया और मंत्रियोंको भीतर बुला कर उनसे पूछा कि इस समय क्या कर्तव्य है ? इसनेमें पुण्ययोगसे अमिततेजके भवमें जो जो विद्यायें प्राश थीं वे सब आकर अपराजितसे कहने लगी कि हम शत्रको तहस-नहस करने के लिए समर्थ हैं। आप किसी भी तरहकी चिन्ता न करें । इतना कह-कर वे विधायें अपराजितका काम करनेको उचत हो गई। तब व दोनों भाई प्रभाकरी राजधानीकी रक्षाके लिए मंत्रीको नियत कर तथा स्वयं नर्तकियोंका रूप बना कर दूतके साथ-साथ वहॉसे शिवमन्दिरपुरको चल पड़े और थोड़ी ही देर वहाँ जा पहुँचे । वहाँ उन्होंने मतारिके सामने बहुत ही उत्तम नृत्य किया, जिसको देख कर उसे बहुत अचम्भा हुआ । खुश होकर उसने नृत्यकला सीखने के लिए अपनी कनकधी पुत्रीको उनके साथ कर दिया-उन्हें सौंप दिया । वे नर्तकी-रूपधारी कनकनीको ले गये और उन्होंने उसे यथायोग्य नृत्य गीत आदि बहुतसी कलायें सिखा दी । दैवयोगसे वह कन्या अनंतवीर्य पर आसक्त हो गई । तब ने दोनों उसे लेकर आकाशमें चले गये । यह सव समाचार सुन कर दमतारिने बहुतसे योधाओंको भेजा; परन्तु अपराजितने उन्हें एक मिनटमें ही मार भगाया । तव क्रुद्ध होकर दमतारिने
और और सुभटाको भेजनेकी योजना की, पर वे भी अपराजितके सामने न ठहर सके । आखिर वह स्वयं ही युद्ध करनेको तैयार हुआ और सोचने लगा कि यह नर्तकियोंका प्रभाव नहीं है, किन्तु कुछ छल है । इसके बाद पूर्वभवको प्राप्त हुई विद्याओं के द्वारा अपराजितने दयतारिके साथ खूब ही घमासान युद्ध किया । तथा दमतारिके साथ अनंतवीर्यका भी बहुत देर तक युद्ध हुआ। आखिरमें क्रुद्ध हो दमतारिने चक्रियोंको भी डरा देनेवाला चक्र लिया
और उसे अनंतवीर्य पर चलाया । पुण्य योगसे वह अनंतवीर्यकी प्रदक्षिणा देकर उसके हाथमें आ पहुंचा और उसीके द्वारा अनंतवीर्यने दमतारिका काम तमाम कर दिया; उसे मार डाला । उस समय सभी विद्याधर आये और उन तीन खंडके स्वामियोंको प्रणाम करने लगे।
इसके बाद विद्याधरों और अतुल सम्पत्ति सहित वे प्रभाकरी पुरीको वापिस लौटे । मार्गमें आते हुए उन्होंने कीर्तिधर नाम जिन भगवानको देखा और उन्हें नमस्कार कर उनसे धका उपदेश सुना तथा कनकश्रीके भवोंको भी पूछा।