________________
पाँचवाँ अध्याय । ____ इधर कोई वैराग्यका निमित्त पा सहस्रायुध भी विरक्त हो गया और शान्तवलीको राज-पाट सॅभला कर उसने पिहितास्रव मुनिसे जिनदीक्षा लेलीवह भी दिगम्बर वन गया । इसके बाद ध्यान समाप्त होने पर वज्रायुध और सहस्रायुध दोनों साथ साथ विपुलाचल पर्वत पर आये और शान्त परिणामोंसे उन्होंने माणोंका त्याग किया, जिससे वे निष्पाप ऊर्ध्व अवेयकके सौमनस नाम अधो विमानमें उनतीस सागरकी आयुवाले हँसमुख उत्तम देव हुए । एवं आयुपर्यन्त वहाँके सुखौंको भोग कर वज्रायुधका जीव चया और जम्बूदीपके पूर्व विदेहमें पुष्कलावती देशकी पुण्डरीकिनी नगरीमें घनरथ नाम राजाकी मनोहरा नाम रानीके गर्भसे मेघरथ नाम पुत्र हुआ। मेघरथके जन्म-समय घनरथने वड़ा भारी महोत्सव किया । एवं घनरथ राजाकी मनोरमा रानीके गर्भसे सहस्रायुधका जीव जो अहमिन्द्र था, वह दृढ़रथ नाम पुत्र उत्पन्न हुआ । दोनों क्रम क्रमसे बढ़ने लगे । जव वे युवा हुए तब घनरथने उनका विवाह महोत्सव किया । मेघरथका ब्याह प्रियमित्रा और मनोरमाके साथ हुआ और दृढ़रथका मन
मोहिनी सुमतिके साथ । कुछ कालमें मेघरथकी प्रियमित्रा नाम भार्याने नन्दि। बर्द्धन नाम पुत्रको जन्म दिया और दृढ़रथकी सुमति नाम भार्याने वरसेन नाम
पुत्रको । इस प्रकार पुत्र, पौत्र आदि सम्पतिसे घनरथ ऐसा जान पड़ता था मानों तारा-गण, चाँद और सूरजसे युक्त सुमेरु पर्वत ही है। एक समय घनस्थने किसी कारणसे उदास हो मेघरथको राज-पाट सौंप कर जैनेन्द्री दीक्षा धारण करली । उसके दीक्षा समय लौकान्तिक देव आये तथा और और देवतागणने आकर उसका दीक्षा-कल्याणक किया । वह अपना आप ही गुरु था--- तीर्थकर था। उसने थोड़ी ही देरमें घाति कर्मोंको घात कर केवलज्ञान-निधि प्राप्त कर ली-वह केवली हो गया ।
इसके बाद एक समय मेघरथ राजा देवरमण नाम उद्यानमें अपनी रानियोंको साथ लेकर क्रीड़ा करनेको गया था। वहाँ जाकर वह एक चंद्रकान्त शिला पर बैठ गया । इतनेमें आकाशमार्गसे जाता हुआ एक विद्याधर वहाँसे आ निकला। वहाँ उसका विमान रुक गया । उस वक्त उसने शिला पर बैठे हुए मेघरथको देखा और देखते ही वह क्रोधसे लाल पीला हो गया । तथा शिला-सहित राजाको उठानेके लिये विद्यावलसे वह उस शिलाके नीचे घुस गया । यह बात राजाको भी मालूम पड़ गई और उसने उस शिलाको अपने पॉवके अँगूठेके अग्रभागसे कुछ दवा दिया । तब वह विद्याधर उस शिलाके भारको
पाण्डव-पुराण ११