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पाण्डव-पुराण ।
राज पद दे दिया । इस समय प्रभु सूरजकी प्रभाको भी जीतते थे । इसके कुछ काल वाद उनकी आयुधशाला में चक्ररत्न पैदा हुआ, जिसके द्वारा उन्होंने छहों खंडोंको विजय किया; सभी राजोंको जीत लिया । एवं उनके शस्त्रगृहमें चक्रे, छत्रे, दंडे, अर्सि और लक्ष्मीगृहमें धर्म, चूड़ामणि कॉकिंणी तथा हस्ति नागपुर में पुरोहित, गृईपति, सेनापति, स्थपति तथा विजयार्द्धमें कैन्या, थी और घोड़ों ये १४ रत्न पैदा हुए । इस प्रकारकी अतुल विभूतिको पाकर शान्तिनाथ प्रभुने बहुत काल तक सुख-चैनसे राज किया । एक दिन प्रभु खूब ही अभिमानसे भरे हुए, दर्पण में अपना मुॅह देख रहे थे। उस वक्त उन्होंने अपनी मूर्तिको पहिले किसी और रूपमें और फिर बादमें किसी और ही रूपमें देखा । तत्र इसी निमित्त से वे संसारसे उदास हो गये और उनका जो विषयोंमें राग था वह उनसे कोसों दूर भाग गया । इतनेमें स्वर्गसे लौकान्तिक देव आये और उन्होंने प्रभुका स्तोत्र करके अपना नियोग पूरा किया | इसके बाद देवता- गण के साथ-साथ इन्द्र वगैरह आये और प्रभुका अभिषेक कर उन्होंने उन्हें भाँति भाँति के वस्त्र आभूषण पहिनाये; तथा पालकी में बैठा कर वे उन्हें सहस्राभुवनमें ले गये और वहाँ एक शिला पर विराजमान किया । इस समय प्रभुने पंचमुष्टि केशलोंच किया तथा वस्त्र आभूषण वगैरह सब उतार कर, उनसे ममत्व छोड़ वे दिगम्बर हो गये । इस दिन जेठ वदी चौथ थी और दो पहरका समय था । इसी दिन प्रभुके साथ साथ चक्रायुध आदि हजारों और और राजोंने भी संयमको धारण किया । इस समय प्रभुने छह दिनोंके उपवासके बाद हमेशा आहार लेनेकी प्रतिज्ञा की । दीक्षा लेते ही प्रभुको मन:पर्ययज्ञान हो गया और वे चार ज्ञानके धारी हो गये । इसके बाद पारणाके लिए वे शिवमन्दिरपुर गये और वहाँ उन्हें सुमित्र राजाने शुद्ध आहार दिया । एक दिन सहस्राभुवनमें भाइयों सहित छह उपवासोंको एक साथ करनेवाले वे प्रभु पूर्व दिशाको मुँह कर ध्यानस्थ हो गये । प्रभु सोलह वर्ष तक छद्मस्थ अर्थात् अल्पज्ञानी रहे । वाद उन्हें पौष सुदी दसमीके दिन सामके समय केवलज्ञान हो गया । भगवान्के चक्रायुध आदि छत्तीस गणधर हुए । उनके समवसरणमें बारह सभायें थीं और वे सब सभ्योंसे भरपूर थीं। इसके वाद सुर-असुरों द्वारा सेवित उन प्रभुने पृथ्वीतल पर विहार किया । जब उनकी एक महीने की आयु शेष रह गई तब वे सम्मेदशिखर पर पहुँचे और जेठ वदी चौदसके दिन सिद्ध-स्थानमें जा विराजे । तथा चक्रायुध आदि धीरवीर नौ हजार मुनिगण, कर्मसमूहको नाश कर निर्वाणको प्राप्त हुए । इस वक्त सुर-असुरोंने