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पाण्डव-पुराण |
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इनसे कोई बात छुपी नहीं है । धन्य है ज्ञानकी महिमा, जिसके द्वारा कि हो गई, हो रही और होनेवाली सभी बातें सामने आ जाती हैं । इसके बाद इन्द्र जैसे
और अद्भुत श्री-युक्त युधिष्ठिर महाराजको देख कर उन सव कन्याओंको बड़ा सन्तोष हुआ।
. उधर चंडवाहन राजाने ज्यों ही पवित्र पांडवोंके आगमनको सुना त्यों ही उसे उनसे मिलनेकी बड़ी उत्सुकता हो उठी और उससे फिर एक मिनिट भी न रहा गया।अतः वह गुणोंका भंडार वहाँसे उसी समय उनके दर्शनके लिए चल पड़ा । उसके सिर पर छत्र लग रहा था और आगे आगे मेघकी नाँई गर्जने.. वाले बाजे वजते जाते थे; तथा साथमें सुन्दर सुन्दर बहुतसे घोड़े थे । उसने वहाँ जाकर पहले मुनिराजको नमस्कार किया-उनकी वन्दना की और वाद मस्तक झुका कर पाँचों पांडवोका गाढ़ आलिंगन किया-उनसे भेंट की । सके वाद सवने परस्परमें एक दूसरेसे कुशल-वार्ता पूछी । ऐसा करनेसे आपमें प्रेम बढ़ता है, अत एव ऐसा करना ही चाहिए। क्योंकि साधर्मी भाइयोंके साथ वात्सल्य दिखानेसे चित्तमें बड़ी प्रसन्नता और स्नेह होता है-एक दूसरेके प्रति निजी भाव पैदा होता है । और फिर धीरे धीरे आत्मवल बढ़ता जाता है। यहाँ तक कि वह शत्रु, पित्र सवको एक दृष्टिसे देखने लगता है । इसके बाद राजा उनको साथ लेकर पुत्रियों सहित नगरको चला आया। वहाँ उसने भोजन आदिसे उनका . खूब आदर किया और उन्हें अपने एक महलमें ठहरा दिया। इसके बाद उसने युधिष्ठिरसे विवाहके लिए प्रार्थना की। ,
चंडवाहनने विवाहोत्सवके लिए एक बड़ा सुंदर मंडप वनवाया, जो मंगल-नादोंसे शब्द-मय और नटियोंके नृत्योंसे नृत्य-मय हो रहा था। उसमें जो मोतियोंकी झालरें लगी थीं उनसे वह हँसता हुआ सा दीखता था, लटकती हुई मालाओंसे वोलता हुआ सा जान पड़ता था और तख्तोंसे आदर करता हुआ सा देख पड़ता था । विवाहके समय उसमें विवाह-मंगलके सूचक सोनेके सुन्दर कलश सजाये गये थे, जिनसे उसकी अपूर्व ही शोभा हो गई थी । ऐसे सुन्दर मनको मोहनेवाले अपूर्व मंडपमें राजा चंडवाहनने विवाहोत्सव किया । इसके बाद युधिष्ठिरने पुण्योदयसे मंगल-गीतोंकी मधुर ध्वनिके साथ उन ग्यारह ही कन्या
ओंके साथ विवाह फिया-उनका पाणि-ग्रहण किया । उस समय युधिष्ठिरके पासमें खड़ी हुई वे कन्यायें ऐसी शोभती थीं मानों वाञ्छित, अर्थको देनेवाले