SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा अध्याय। ७५ सखिक नर्तकी पातली कलाये । उसे लेकर का मजाक अपनी कनकश्रीको ले गा । दैवयोगसे बहकमय दोनोंने दूतको तो वाहिर भेज दिया और मंत्रियोंको भीतर बुला कर उनसे पूछा कि इस समय क्या कर्तव्य है ? इसनेमें पुण्ययोगसे अमिततेजके भवमें जो जो विद्यायें प्राश थीं वे सब आकर अपराजितसे कहने लगी कि हम शत्रको तहस-नहस करने के लिए समर्थ हैं। आप किसी भी तरहकी चिन्ता न करें । इतना कह-कर वे विधायें अपराजितका काम करनेको उचत हो गई। तब व दोनों भाई प्रभाकरी राजधानीकी रक्षाके लिए मंत्रीको नियत कर तथा स्वयं नर्तकियोंका रूप बना कर दूतके साथ-साथ वहॉसे शिवमन्दिरपुरको चल पड़े और थोड़ी ही देर वहाँ जा पहुँचे । वहाँ उन्होंने मतारिके सामने बहुत ही उत्तम नृत्य किया, जिसको देख कर उसे बहुत अचम्भा हुआ । खुश होकर उसने नृत्यकला सीखने के लिए अपनी कनकधी पुत्रीको उनके साथ कर दिया-उन्हें सौंप दिया । वे नर्तकी-रूपधारी कनकनीको ले गये और उन्होंने उसे यथायोग्य नृत्य गीत आदि बहुतसी कलायें सिखा दी । दैवयोगसे वह कन्या अनंतवीर्य पर आसक्त हो गई । तब ने दोनों उसे लेकर आकाशमें चले गये । यह सव समाचार सुन कर दमतारिने बहुतसे योधाओंको भेजा; परन्तु अपराजितने उन्हें एक मिनटमें ही मार भगाया । तव क्रुद्ध होकर दमतारिने और और सुभटाको भेजनेकी योजना की, पर वे भी अपराजितके सामने न ठहर सके । आखिर वह स्वयं ही युद्ध करनेको तैयार हुआ और सोचने लगा कि यह नर्तकियोंका प्रभाव नहीं है, किन्तु कुछ छल है । इसके बाद पूर्वभवको प्राप्त हुई विद्याओं के द्वारा अपराजितने दयतारिके साथ खूब ही घमासान युद्ध किया । तथा दमतारिके साथ अनंतवीर्यका भी बहुत देर तक युद्ध हुआ। आखिरमें क्रुद्ध हो दमतारिने चक्रियोंको भी डरा देनेवाला चक्र लिया और उसे अनंतवीर्य पर चलाया । पुण्य योगसे वह अनंतवीर्यकी प्रदक्षिणा देकर उसके हाथमें आ पहुंचा और उसीके द्वारा अनंतवीर्यने दमतारिका काम तमाम कर दिया; उसे मार डाला । उस समय सभी विद्याधर आये और उन तीन खंडके स्वामियोंको प्रणाम करने लगे। इसके बाद विद्याधरों और अतुल सम्पत्ति सहित वे प्रभाकरी पुरीको वापिस लौटे । मार्गमें आते हुए उन्होंने कीर्तिधर नाम जिन भगवानको देखा और उन्हें नमस्कार कर उनसे धका उपदेश सुना तथा कनकश्रीके भवोंको भी पूछा।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy