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________________ ७४ पाण्डव-पुराण । mmmmmmmmmmmmmmm wome . . . . .nw or mamer marrammmmmanm इससे अपना अपमान समझ नारद जल-भुन कर आग-बबूला हो गये; और उसी समय कॅवार मासके सूरजकी नाई तरते हुए जीयोका अनिष्ट करनेवाले नारद दमतारि प्रतिनारायणके नगर पहुँचे । दमतारि सिंहासन पर विराजमान था। बहुतसे सभ्यगण उसकी सेवामें उपस्थित थे। यह महापुरुप बहुत गौरव-युक्त था। मनोरथकी सिद्धिकी लालसासे सभी जन आ-आ कर उसकी उपासना-सेवा करते थे । उसको देख कर नारदजी आकाशसे पृथ्वीतल पर उतरे और दमतारिको शुभ आशीर्वाद देकर सभामण्डपमें आ खड़े हुए। उन्हें देखते ही राजा सिंहासन छोड़ कर उठ खड़ा हुआ और उसने नमस्कार कर उन्हें बड़े आव-आदरके साथ मनोहर सिंहासन पर बैठाया । इसके बाद दमतारि बोला, महाराज ! आप भक्तों पर प्रेमकी दृष्टिसे देखनेवाले अन्योत्तम है, संसार-पारेभ्रमणको मिटानेवाले और जीवोंको विभूति देकर सुखी करनेवाले हैं, एवं आप सब तरह सुशोभित हैं । कहिए कि आज आपका यहाँ पधारना कैसे हुगा । यह सुन नारदजी बोले, राजन् ! सुनिए । मैं हमेशा आपके योग्य सारसूत और उत्तम पदार्थोकी खोजमें इधर उधर घूमा करता हूँ । मैंने कल रंभा और उर्वशीके समान दो दर्तकियोंको प्रभाकरीपुरीके राजा अपराजित और अनंतचीर्यकी सभागे नृत्य करते हुए देखा और इसी समाचारको लेकर मैं आपके पास आया हूँ । कारण वे दोनों आपके ही योग्य हैं । अतः घुझसे यह अनिष्ट सहन नहीं हुआ और मैं शीघ्र ही यहाँ चला आया हूँ । सभी मानते हैं कि शिरोधार्य चूडानणि रत्न यदि पैरमें पहिन लिया जाय तो किसीको भी सहन न होगा । राजन् ! जिस तरह अमूल्य मणि रंक-दरिद्री पुरुषके यहाँ शोभा नहीं पाता, वह राजों, रईसों, साहूकारोंके यहॉ ही शोभित होता है उसी तरह वे नर्तकी भी अपराजित और अनंतवीर्यके यहॉ शोभा नहीं पाती; वे आप जैसे महापुरुपके यहाँ ही शोमा पावेंगी । यह सुन दमतारिने उसी समय कुछ मेंट देकर दूतको अपराजित और अनंतवीर्यके पास भेजा, जो बहुत ही चतुर और समयोचित कार्यों में कुशल था। प्रभाकरीपुरीमें पहुँच कर उसने उन पुरुषोत्तमोको सभामंडपमें बैठे हुए देखा और उनके भागे भेंट रख कर उन्हें नमस्कार किया तथा कहा कि रागन् ! आप महानुभावों के लिए दमतारि रतिनारायणने कुशलका संदेशा भेजा है तथा मुझे आपके पास भेज कर आपसे उन दो नर्तकियोंकी याचना की है जो कि आपके पास है । कृपा कर आप उन दोनों-वरी और चिलातिका-नर्तकियोंको उन्हें दे दीजिए । इससे परस्परमें बहुत ही गाढ़ी प्रीति हो जाएगी । यह सुन उन
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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