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पाण्डव-पुराण । भय है, इस लिए वहाँ न छोड़ कर आपको विजयार्द्धकी गुफामें हम लोग छिपा देगे । उनकी ये बातें सुन कर बुद्धिसागर मंत्री वोला कि मै एक प्रसिद्ध कहानी कहता हूँ; उसे सुनिए।
सिंहपुरमें एक दुष्ट तपस्वी रहता था। उसका नाम सोम था । वह वादविवादका बहुत प्रेमी था । एक दिन शास्त्रार्थमें उसे जिनदासने जीत लिया, जिससे वह बहुत लज्जित और दुखी हुआ; तथा खोटे परिणामोंसे मर कर भैसा हुआ। उसका स्वामी उस पर विल्कुल दया नहीं करता था, किन्तु उसे हमेशा ही बोझा ढोनेके काममें लगाये रखता था । बोझा ढोनेके कारण वह धीरे धीरे दुवला हो गया। उस समय उसे अपने पहले भवोकी याद हो आई और वह वहाँसे भी वैर वॉध कर मरा और मसानभूमिमें दुष्ट राक्षस हुआ। सिंहपुरमें दो राजा थे; एक भीम और दूसरा कुंभ । कुंभका रसोइया बहुत ही चतुर था । लोग उसको रसायनपाक नामसे पुकारते थे। वह हमेशा राजाको मांस पका कर खानेके लिए देता था। एक दिन उसने राजाको मनुष्यका मांस पका कर खिलाया । वह राजाको बहुत स्वादिष्ट मालूम पड़ा । राजा लोलुपताके वश हो रसोइयासे बोला कि तुझे रोज ऐसा ही अच्छा मांस पकाना चाहिए । रसोइया जी हाँ, हुजूर कह कर उस दिनसे मनुष्यका मांस पका-पका कर राजाको खिलाने लगा । जव यह बात शहरके लोगोंको मालूम पड़ी कि यह दुष्ट राजा मनुष्य-भक्षक है तब उन्होंने एकता करके उसे नगरसे वाहिर निकाल दिया। मंत्री वगैरहने भी उस दुष्टका साथ न दिया। केवल उसके साथ एक मात्र रसोइया रह गया। दुष्ट राजाने एक दिन उसे भी मार कर खा डाला । अब वह पहिले कहे हुए राक्षसकी आराधना कर उसकी सहायतासे मजाके लोगोंको मार मार कर खाने लगा और नगरके वाहिर घूमने लगा । उस समय लोग बहुत ही भयभीत हुए। उन्होंने सिंहपुरमें रहना ही छोड़ दिया और कुंभकारपुर नामक पुरको वसा कर वे वहाँ रहने लगे। उन्होंने दुखी हो कहा कि हे राक्षस ! तू प्रति दिन एक आदमी और एक गाड़ी अन्न ले लिया कर; परन्तु और और मनुष्यों पर तो दयादृष्टि कर। . .
वहीं पर एक चंडकौशिक नाम वाइव (जाति) रता था । उसकी स्त्रीका नाम सोमश्री था । सोमश्रीके भूतोंकी सेवा-उपासनाके प्रभावसे मौड्यकौशिक
नाम पुत्र हुआ था। क्रमशः राक्षसके पास जानेकी मौड्यकौशिककी भी वारी .. आई । प्रतिदिनकी नॉई अन्नकी गाड़ीके साथ वह भेजा गया । वह कुंभके