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पाण्डव-पुराण।
mommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm जटीके पुत्र अर्ककीर्तिके साथ कर दिया। इससे दोनों राजोंमें परस्पर खूब गाढ़ी भीति हो गई। अर्ककीर्ति और ज्योतिर्मालाके अमिततेज नामका पुत्र और सुतारा नामकी पुत्री हुई । इसी भाँति त्रिपृष्ठ और स्वयंप्रभाके भी श्रीविजय और विजयभद्र नाम दो पुत्र तथा ज्योतिःममा नाम एक कन्या हुई । इसके बाद किसी निमित्तको पाकर प्रजापति संसार-विषयभोगोंसे उदास होगये और पिहिताश्रव मुनिके पास जैनेन्द्री दीक्षा धारण कर तथा तपके द्वारा कोका नाश कर मोक्षधामको चले गये । यह सुन ज्वलनजटी भी अर्ककीर्ति पर राज-भार डाल कर जगनंदन मुनिके पास दिगम्वरी दीक्षा ले परम ध्यानके प्रभावसे परम पदके स्वामी हो गये।
इसके बाद जब ज्योति प्रभाका स्वयंवर रचा गया तब उसने अमिततेजको वरा, उसके गलेमें वरमाला डाली और अर्ककीर्तिकी पुत्री सुताराने अपने स्वयंवरमें श्रीविजय पर आसक्त हो उसके गलेमें वरमाला डाली । स्वयंवरके बाद दोनोंका परस्पर में खूब धूमधामके साथ विवाह महोत्सव किया गया । इसके वाद बहुत दिन तक राज-सुख भोग आयुका अन्त होने पर नारायण मर कर सातवें नरक गया और विजय वलभद्रने श्रीविजयको राज-पद देकर विजयभद्रको युवराज वनाया। तथा वह स्वयं भाईके शोकसे व्याकुल हो स्वर्णकुंभ मुनिके पास दीक्षित हो गया। उसके साथमें सात हजार राजोंने भी संयमको ग्रहण किया। एवं थोड़े ही समयमें घातिया कर्मोंको नाश कर वह परमोदयका धारक केवली हो गया। यह सुन अर्ककीर्ति भी अमिततेजको राज-भार सौंप कर विपुलमति मुनिराजके चरणों में तपस्वी हो गया । इसके बाद अमिततेज और अर्ककीर्तिने बहुत काल तक अविकल राज-सुख भोगा । उन्हें कोई बातकी चिन्ता न हुई। ____एक दिन पोदनापुरके नरेशकी सभामें एक नया मनुष्य आया और राजाको आशीर्वाद देकर वोला कि राजन् ! मेरी बात जरा ध्यानसे सुनिए । आजसे सातवें दिन आपके-पोदनापुरके राजाके-मस्तक पर महावज्रकी वरसा होगी, इस लिए उससे वचनेका कुछ उपाय कीजिए। यह सुन क्रोध आ विजयभद्र युवराजने कहा कि पंडितजी ! यह तो बताओ कि उस समय तुम्हारे मस्तक पर काहेकी वरसा होगी। इस पर उस निमित्तज्ञानीने अहंकार भरे शब्दोंमें कहा कि महाराज!
सुनिए-उस समय मेरे मस्तक पर अभिषेक पूर्वक रत्नोंकी वरसा होगी। उसके ___ इन वचनोंको सुन श्रीविजयको वड़ा अचंभा हुआ। उन्होंने कहा कि भद्र ! यहाँ