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पाडण्व-पुराण ।
nommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm यह सुन अश्वग्रीवने उसी समय मंत्रियोंको आज्ञा दी कि तुम लोग उस शत्रुकी जल्दी खोज करो और विषके अंकुरकी नाँई उसे जड़से उखाड़ कर फैंक दो; नहीं तो वह पीछे बहुत दुःख देगा । मंत्रियोकी सलाहसे गूढचर लोग पोदनापुर भेजे गये । वहाँ उन्होंने तलाश किया और शतविन्दुकी बताई हुई सिंहवध आदि वातों परसे यह निश्चय किया कि आत्माभिमानी यह त्रिपृष्ठ ही हमारे महाराजका शत्रु है । इसीके मिमित्तसे सव उपद्रव हो रहे हैं । इतना पता लेकर वे वापिस आये और उन्होंने राजाको अपने दिलका सब हाल कह सुनाया, जिसे सुन अश्वग्रीव और भी भयभीत हुआ | उसने त्रिपृष्टके पास चिंतागति
और मनोगति नामक दो दूतोंको भेजा। वे दोनों निपृष्ठके पास पहुंचे तथा उन्हें भेंट दे, नमस्कार कर बड़े आदरके साथ वोले कि राजन् ! विद्याधरोंके अधिपति अश्वग्रीवने आपके लिए यह आज्ञा की है कि मैं स्थावर्त पर्वत पर आता हूँ और आप भी वहाँ आकर मुझसे मिलें । इसी लिए हम लोग आपको लेने के लिए आये हैं। कृपा कर आप चलिए । इस पर त्रिपृष्ठने क्रोध भरे शब्दोंमें कहा कि मैंने आज तक उष्ट्रग्रीव, खरग्रीव और अश्वग्रीववाले मनुष्य कहीं नहीं देखे, फिर यह घोड़े कैसी गर्दनवाला मनुष्य कहाँसे आया! त्रिपृष्ठकी व्यंग्योक्ति सुन कर दूतोंने कहा कि यह आपका ख्याल गलत है । एक विद्याधरोंके स्वामी और सारे संसार द्वारा पूजे जानेवाले पुरुषोत्तमके लिए ऐसे शब्दोंका प्रयोग करना आपको शोभा नहीं देता। इस पर त्रिपृष्ठने कहा कि यदि तुम्हारा स्वामी आकाशमें चलनेवाला विद्याधर है तो वह पक्ष-युक्त पक्षी होगा, उसको देखनेके लिए मुझे अवकाश नहीं-मैं नहीं आ सकता। इसके उत्तरमें दूतोंने कहा कि हमारा स्वामी चक्रनायक है। उन्हें देखे विना अभिमानमें भूल कर ऐसी ऊंटपटाँग वाते वकना ठीक नहीं है । उनके कोपसे शरीरमें रहना तक कठिन हो जाता है तव पृथ्वी पर तो रह ही कौन सकता है। दूतोंके ऐसे कठोर वचनोंको सुन कर त्रिपृष्ठने कहा कि यदि तुम्हारा स्वामी चक्रनायक है तो वह घड़ा बनानेवाला कारीगरोंका अगुआ कुम्हार है । उसके लिए क्या तो भेजा जाय और क्या उससे मेल-मिलाप किया जाय । यह सुन दूतोंने क्रोधभरे शब्दोंमें कहा कि जिस कन्यारत्नको आपने अपना भोग्य पदार्थ बना लिया है वह क्या आपको पच जायगा ? नहीं, कभी नहीं । ज्वलनजटी और प्रजापति कौन खेतका मूली हैं और चक्रवतीके क्रोधके आगे वे क्या कर सकते है । इतना कह कर वे दोनों कुबुद्धि दूत वापिस लौट आये और अश्वग्रीवके पास आ, उसे नमस्कार कर उन्होंने
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